जम्मू-कश्मीर के युवाओं को लेकर ज्यादा’तर लोगों के जेहन में पत्थरबाजी करते युवाओं की तस्वीरें ही उभरती होंगी, और वहां की युवतियों को लेकर तो कल्पना करना भी मुश्किल है। यही कारण है कि राज्य की पहली महिला आईपीएस रुवेदा सलाम को यूनिफॉर्म में देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं। राज्य की अन्य लड़कियों के लिए रुवेदा प्रेरणा’स्रोत बन चुकी हैं।
‛रुवेदा सलाम का जीवन एक लंबे संघर्ष की कहानी है जंहा एक काले अँधेरे के बाद एक चकमते सूरज की सुबह हुई है। बन्दूको की तड़तड़ाहट और एक अजीब सा डर फिर भी रुवेदा ने कर दिखाया। देश ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक भारतीय प्रशासनिक सेवा की इस परीक्षा में रुवेदा सलाम ने दो बार सफलता हासिल की है’.
‛पहली बार रुवेदा सलाम को आईपीएस की रैंक मिली थी और उन्होंने हैदराबाद के सरदार बल्लभ भाई पटेल अकैड’मी से ट्रेनिंग पूरी की थी। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद रुवेदा को चेन्नैई में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया’.
‛रुवेदा सलाम एक आईपीएस ऑफिसर के तौर पर चुनौतियों की बात करते हुए बताती हैं कि उनकी ड्यूटी वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट करने और अधीनस्थों से मिली रिपोर्ट्स को देखने के साथ ही सुबह 7 बजे से शुरू हो जाती है, लेकिन कोई भी यह नहीं बता सकता कि ये कब खत्म होगी। कई बार रात में 10 बजे तक उन्हें काम करते रहना पड़ता है’.
‛कश्मीर घाटी की पहली महिला आईपीएस बनने के बाद भी रुवेदा यहीं नहीं रुकीं बल्कि अपने सपने को पूरा करने के लिए वह दोबारा यूपीएससी की परीक्षा में शामिल हुईं और इस बार भी सफलता हासिल की। रुवेदा को उम्मीद है कि उन्हें सब कलेक्टर की पोस्ट मिल सकती है’.
‘मेरे पिता अक्सर मुझसे कहा करते थे कि तुम्हें बड़े होकर आईएएस ऑफिसर ही बनना चाहिए। तभी से मैंने आईएएस में आने के लिए ठान लिया था। मेरे पिता की बातें मुझे हमेशा प्रेरणा देती थीं।’ रुवेदा कहती हैं कि नब्बे के दशक में घाटी के हालात बहुत ही खराब हुआ करते थे। हालांकि बाद में इंटरनेट की पहुंच ने घाटी में सूचनाओं की उपलब्धता को काफी हद तक सुनिश्चित किया है’.
‛जिससे यहां के युवाओं के लिए आगे बढ़ने के रास्ते खुल गए हैं। रुवेदा को इस बात का अफसोस तो है कि ट्रेनिंग के चलते पिछले दो सालों से वह अपने राज्य नहीं जा पाईं लेकिन वह मानती हैं कि राज्य के विकास के लिए किए जा रहे प्रयास और उसके हालात को वह बाहर से ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पा रही हैं’.
“रुवेदा बताती हैं कि पिछले 5-6 महीनों में भी हालात कुछ खराब जरूर हुए हैं, लेकिन अब अलगाववादियों की हड़ताल का यहां के आम जनजीवन पर खासा असर नहीं पड़ता है. रुवेदा आपसी सद्भाव और सौहार्द्र के लिए सूफी परंपरा को बहुत जरूरी मानती हैं”.
“इसके साथ ही वह घाटी में कश्मी’री पंडि’तों की वापसी को भी महत्व पूर्ण कदम मानती हैं. रुवेदा को विलियम वर्ड्सवर्थ और रॉबर्ट फ्रॉस्ट की प्रकृति से जुड़ी कविताएं बेहद पसंद हैं और वह खुद भी कविताएं लिखती हैं। इसके अलावा वह सोशल वर्क भी करना चाहती हैं ताकि ज़रूरत मंदों की मदद कर सकें”.