चारों तरफ एयर स्ट्राइक का शोर है। वो मीडिया जो पुलवामा में हुए आतंकी हमले के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा था अब एयर स्ट्राइक के लिए मोदी सरकार को खुलकर क्रेडिट दे रहा है, बात बात पर मोदी का सीना 56 इंच साबित करने की बात कह रहा है या कहें भारतीय सेना के पलटवार के बाद नरेंद्र मोदी को शूरवीर के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इस एकतरफा शोर में कौन सा मुद्दा है जो दबाया जा रहा है। एकतरफ एयर फोर्स के पराक्रम की बात हो रही है मगर एयरपोर्ट की नीलामी की बात नहीं हो रही है।
वही नीलामी जिसके जरिए अगले 50 सालों के लिए 5 एयरपोर्ट को अडानी के हवाले कर दिया गया है।
सरकारी निगरानी में रहने वाले एयरपोर्ट को प्राइवेट इंडस्ट्री के हवाले करना वैसे ही हमेशा सवालों के घेरे में रहता है और उसमें भी 6 एयरपोर्ट में से पांच एयरपोर्ट मोदी के मित्र अडानी को मिल जाना सवाल को बड़ा बना देता है।
अब इस नीलामी के जरिए मिले एयरपोर्ट अगले 50 साल तक अडानी ग्रुप के पास होंगे। यानी इन एयरपोर्ट को कैसे चलाना है, रख रखाव कैसे करना है, इन सब का अधिकार अडानी ग्रुप के पास होगा।
जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, मंगलुरु और त्रिवेंद्रम के एयरपोर्ट अडानी ग्रुप को दे दिए गए हैं।अब देखना है कि इनका संचालन कैसे किया जाता है।
दरअसल राफेल सौदे में अंबानी को टेंडर मिलने पर भी सवाल उठे थे कि कहीं प्रधानमंत्री मोदी की मित्रता की वजह से तो ये फेवर नहीं मिल रहा है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इस एकतरफा शोर में कौन सा मुद्दा है जो दबाया जा रहा है। एकतरफ एयर फोर्स के पराक्रम की बात हो रही है मगर एयरपोर्ट की नीलामी की बात नहीं हो रही है।
वही नीलामी जिसके जरिए अगले 50 सालों के लिए 5 एयरपोर्ट को अडानी के हवाले कर दिया गया है।
सरकारी निगरानी में रहने वाले एयरपोर्ट को प्राइवेट इंडस्ट्री के हवाले करना वैसे ही हमेशा सवालों के घेरे में रहता है और उसमें भी 6 एयरपोर्ट में से पांच एयरपोर्ट मोदी के मित्र अडानी को मिल जाना सवाल को बड़ा बना देता है।
अब इस नीलामी के जरिए मिले एयरपोर्ट अगले 50 साल तक अडानी ग्रुप के पास होंगे। यानी इन एयरपोर्ट को कैसे चलाना है, रख रखाव कैसे करना है, इन सब का अधिकार अडानी ग्रुप के पास होगा।
जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, मंगलुरु और त्रिवेंद्रम के एयरपोर्ट अडानी ग्रुप को दे दिए गए हैं।अब देखना है कि इनका संचालन कैसे किया जाता है।
दरअसल राफेल सौदे में अंबानी को टेंडर मिलने पर भी सवाल उठे थे कि कहीं प्रधानमंत्री मोदी की मित्रता की वजह से तो ये फेवर नहीं मिल रहा है।