अपराधी को पता होना चाहिए कि अपराध करने के बाद उसे भुगतना होगा। ये बयान है बिहार के नए डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का जिनको हाल ही में बिहार की नीतीश सरकार ने राज्य की कानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी सौंपी है।
हैरानी की बात ये भी है कि साल 2012 में एक बच्ची का अपहरण करने के मामले में सीबीआई उनसे साल पूछताछ कर चुकी है, और अब यही शख्स बिहार से गुंडागर्दी ख़त्म करने कसमें खा रहा है।
विवादित डीजीपी की नियुक्ति पर विपक्षियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘नीतीश छाप बेशर्मी भरा सुशासन’ करार दिया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से बिहार सरकार को जिन तीन अफसरों के नाम भेजे गए थे, उनमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम भी था।
बिहार के डीजीपी पद के उनका नाम इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि उन्होंने साल 2009 में ऐलान करते हुए कहा था कि उन्होंने पुलिस सेवा से रिटायरमेंट ली है।
इसके बाद उन्होंने बीजेपी के टिकट से अपने गृह जनपद बक्सर से टिकट माँगा मगर बीजेपी टिकट देने मना किया तो ठीक नौ महीने बाद गुप्तेश्वर पांडेय पुलिस सेवा में फिर से शामिल हो गए।
जब आरोपी ही डीजीपी बन जाये तो क्या उम्मीद बची रह जाती है?-अतुल्य चक्रवर्ती(बच्ची के पिता)
आरोप- साल 2012 में 18 सितंबर को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 8 वीं क्लास में पढ़ने वाली 12 साल की नवरुणा चक्रवर्ती को पहले उसके कमरे से अपहरण करके बच्ची को प्रताड़ित किया, फिर उसकी हत्या कर दी।
मामला मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के पास पहुंचा तो उसने हाथ खड़े कर दिए और इस मामले को बिहार पुलिस की अपराध अनुसंधान शाखा (सीआईडी) को सौंप दिया गया। लेकिन सीआईडी अधिकारियों के हाथ भी कुछ नहीं आया।
अपनी बेटी की हत्या पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, गृह मंत्रालय, और प्रधानमंत्री कार्यालय और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने वाले पिता अतुल्य चक्रवर्ती ने गुप्तेश्वर पांडेय नियुक्ति पर हताशा ज़ाहिर करते हुए कहा कि मैंने ही गुप्तेश्वर पांडेय को अपनी बेटी के अपहरण में आरोपी बनाया था मगर अब उन्हें डीजीपी बना दिया गया, अब क्या उम्मीद बाकी रह गई है।
साथ ही कहा- ‘मैं पहले से कहता था कि इस मामले को ख़त्म करने के लिए पुलिस लगातार दबाव बना रही है मगर किसी ने मेरी नहीं सुनी, पूरी आईपीएस लॉबी उन्हें बचाने के लिए एक हो गई।’
अब सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें कथित सुशासन बाबू कहा जाता है। उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गुप्तेश्वर पांडेय का सियासी गलियारों में अच्छा रसूख है। वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते के रूप में माने जाते हैं और उनका आध्यात्मिक रुझान उन्हें सीधे नागपुर आरएसएस मुख्यालय से जोड़ता है।
बिहार में बढ़ती अपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए शराबबंदी को कामयाबी से लागू कराने के लिए उन्हें डीजीपी पद से नवाज दिया गया।
हैरानी की बात ये भी है कि साल 2012 में एक बच्ची का अपहरण करने के मामले में सीबीआई उनसे साल पूछताछ कर चुकी है, और अब यही शख्स बिहार से गुंडागर्दी ख़त्म करने कसमें खा रहा है।
विवादित डीजीपी की नियुक्ति पर विपक्षियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘नीतीश छाप बेशर्मी भरा सुशासन’ करार दिया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से बिहार सरकार को जिन तीन अफसरों के नाम भेजे गए थे, उनमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम भी था।
बिहार के डीजीपी पद के उनका नाम इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि उन्होंने साल 2009 में ऐलान करते हुए कहा था कि उन्होंने पुलिस सेवा से रिटायरमेंट ली है।
इसके बाद उन्होंने बीजेपी के टिकट से अपने गृह जनपद बक्सर से टिकट माँगा मगर बीजेपी टिकट देने मना किया तो ठीक नौ महीने बाद गुप्तेश्वर पांडेय पुलिस सेवा में फिर से शामिल हो गए।
जब आरोपी ही डीजीपी बन जाये तो क्या उम्मीद बची रह जाती है?-अतुल्य चक्रवर्ती(बच्ची के पिता)
आरोप- साल 2012 में 18 सितंबर को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 8 वीं क्लास में पढ़ने वाली 12 साल की नवरुणा चक्रवर्ती को पहले उसके कमरे से अपहरण करके बच्ची को प्रताड़ित किया, फिर उसकी हत्या कर दी।
मामला मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के पास पहुंचा तो उसने हाथ खड़े कर दिए और इस मामले को बिहार पुलिस की अपराध अनुसंधान शाखा (सीआईडी) को सौंप दिया गया। लेकिन सीआईडी अधिकारियों के हाथ भी कुछ नहीं आया।
अपनी बेटी की हत्या पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, गृह मंत्रालय, और प्रधानमंत्री कार्यालय और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने वाले पिता अतुल्य चक्रवर्ती ने गुप्तेश्वर पांडेय नियुक्ति पर हताशा ज़ाहिर करते हुए कहा कि मैंने ही गुप्तेश्वर पांडेय को अपनी बेटी के अपहरण में आरोपी बनाया था मगर अब उन्हें डीजीपी बना दिया गया, अब क्या उम्मीद बाकी रह गई है।
साथ ही कहा- ‘मैं पहले से कहता था कि इस मामले को ख़त्म करने के लिए पुलिस लगातार दबाव बना रही है मगर किसी ने मेरी नहीं सुनी, पूरी आईपीएस लॉबी उन्हें बचाने के लिए एक हो गई।’
अब सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें कथित सुशासन बाबू कहा जाता है। उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गुप्तेश्वर पांडेय का सियासी गलियारों में अच्छा रसूख है। वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते के रूप में माने जाते हैं और उनका आध्यात्मिक रुझान उन्हें सीधे नागपुर आरएसएस मुख्यालय से जोड़ता है।
बिहार में बढ़ती अपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए शराबबंदी को कामयाबी से लागू कराने के लिए उन्हें डीजीपी पद से नवाज दिया गया।