दिल्ली से सटे गाजियाबाद के गांव महराजपुर में सैंकड़ों लोगों के माथे पर तनाव की लकीरें साफ पढ़ी जा सकती हैं, इस तनाव की वजह उनका वह आशियाना है जिस पर एनजीटी और यूपीएसआईडीसी का बुल्डेजर चल गया, और इन लोगों के मकान तोड़ दिये गए। दिल्ली के आनंदविहार से लगने वाला महाराजपुर गांव, इस गांव में प्रशासन ने नोटिस दिये बगैर ही लोगों के मकान तोड़ डाले, जिसके कारण इन मकानों के बाशिंदे खुले आसमान के नीचे रहने के लिये मजबूर हैं।
गाजियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र के गांव महाराजपुर में एनजीटी और यूपीएसआईडीसी नगर निगम की मिलीभगत की वजह से हाल ही में गरीबों के मकान तोड़ दिए गए हैं, इन मकानों के बाशिंदों के आरोप है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया न ही कोई उनको जानकारी दी गई। जिनके मकान प्रशासन ने तोड़े हैं उनका कहना है कि मकान वैध हैं. और हमारे पास पास उनकी जमीन के कागजात भी मौजूद हैं।
गांव वालों का कहना है कि उनसे सिर्फ इतना कहा गया कि आपने यह मकान पर की जमीन पर बनाए हैं जबकि वह जमीन उनके पुरखों की है जिस पर वह कभी खेती किया करते थे पार्क की जमीन एनजीटी द्वारा पहले ही खाली करा ली गई थी जिसकी रिपोर्ट पटवारी ने 18 अगस्त 2018 को ही एनजीटी को सौंप दी थी उसके बाद गांव के ही रहने वाले हाजी आरिफ की शिकायत पर एनजीटी यूपीएसआईडीसी वह नगर निगम ने इन मकानों को बिना नोटिस दिए जबरन खाली कराया और अनु को ध्वस्त कर दिया अब हालात यह है कि गरीब लोग जिनके पास उस घर का कोई सहारा नहीं वह सड़कों पर रहने के लिए मजबूर है।
आप नक्शे में देख सकते हैं कि खसरा नंबर 401 और 402 में पहले ही पार्क बना हुआ है
मकान मालिकों के एनजीटी के ऑफिस जाने पर उनको एक 2017 का नोटिस दिया गया जिस पर पहले ही कार्रवाई हो चुकी थी जिसमें इन मकानों का कोई जिक्र नहीं था उसमें भी खसरा नंबर 401 और 402 का जिक्र है जो कि अब एक पार्क है उस पर एक सरकारी स्कूल और एक शौचालय बना हुआ है जो नगर निगम द्वारा बनवाया गया था खसरा नंबर 400 का उस नोटिस में भी कोई जिक्र नहीं है जिस पर यह मकान बने हुए थे लेकिन यह गैरकानूनी तरीके से मकान सभी तोड़ दिए गए।
गाजियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र के गांव महाराजपुर में एनजीटी और यूपीएसआईडीसी नगर निगम की मिलीभगत की वजह से हाल ही में गरीबों के मकान तोड़ दिए गए हैं, इन मकानों के बाशिंदों के आरोप है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया न ही कोई उनको जानकारी दी गई। जिनके मकान प्रशासन ने तोड़े हैं उनका कहना है कि मकान वैध हैं. और हमारे पास पास उनकी जमीन के कागजात भी मौजूद हैं।
गांव वालों का कहना है कि उनसे सिर्फ इतना कहा गया कि आपने यह मकान पर की जमीन पर बनाए हैं जबकि वह जमीन उनके पुरखों की है जिस पर वह कभी खेती किया करते थे पार्क की जमीन एनजीटी द्वारा पहले ही खाली करा ली गई थी जिसकी रिपोर्ट पटवारी ने 18 अगस्त 2018 को ही एनजीटी को सौंप दी थी उसके बाद गांव के ही रहने वाले हाजी आरिफ की शिकायत पर एनजीटी यूपीएसआईडीसी वह नगर निगम ने इन मकानों को बिना नोटिस दिए जबरन खाली कराया और अनु को ध्वस्त कर दिया अब हालात यह है कि गरीब लोग जिनके पास उस घर का कोई सहारा नहीं वह सड़कों पर रहने के लिए मजबूर है।
आप नक्शे में देख सकते हैं कि खसरा नंबर 401 और 402 में पहले ही पार्क बना हुआ है
मकान मालिकों के एनजीटी के ऑफिस जाने पर उनको एक 2017 का नोटिस दिया गया जिस पर पहले ही कार्रवाई हो चुकी थी जिसमें इन मकानों का कोई जिक्र नहीं था उसमें भी खसरा नंबर 401 और 402 का जिक्र है जो कि अब एक पार्क है उस पर एक सरकारी स्कूल और एक शौचालय बना हुआ है जो नगर निगम द्वारा बनवाया गया था खसरा नंबर 400 का उस नोटिस में भी कोई जिक्र नहीं है जिस पर यह मकान बने हुए थे लेकिन यह गैरकानूनी तरीके से मकान सभी तोड़ दिए गए।