जमाने में मिलते हैं लाखो आशिक़, मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता
नोटों में लिपट कर, सोने में सिमट मर गए कई…मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफन नहीं होता”
पुलवामा आतंकी हमले से पूरे देश का खून खौल रहा है। पाकिस्तान को अंदर घुस कर सबक सिखाने की सलाह टीवी के अलावा सोशल मीडिया पर जमकर दी जा रही है। इस बीच शहर के एक नौजवान गुलशन अहमद ने सरकार को ऐसी कोई सलाह नहीं दी है, बल्कि खुद मानव बम बनकर पाकिस्तान में घुसने की पेशकश की है। साथ ही कहा है कि यह सरकार तय करे कि उन्हें ट्रेनिंग देने के बाद इसे कहां अंजाम देना है। बेहद गुस्साए मुस्लिम युवक गुलशन अहमद ने मानव बम की पेशकश को लेकर फेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट किया।
इसके बाद एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने देशभक्ति के जज्बे में ओत-प्रोत नौजवान से बात करने का फैसला लिया। बातचीत में वो अपनी बात पर अडिग रहे। पूछा गया, बच्चों का क्या होगा तो सीधे जवाब में बोले-जब शहीदों के बच्चे जिंदगी को जीना सीख रहे हैं तो उनके बच्चे भी सीख ही लेंगे। उन्होंने कहा कि लोहा ही लोहे को काटता है। अगर आतंकी यह समझते हैं कि मानव बम से हिन्दुस्तान को चोट पहुंचाई जा सकती है तो हम भी यही करने को तैयार हैं।
उल्लेखनीय है कि नौजवान गुलशन अहमद के पिता महरूम गफूर अहमद भी शहर की एक अलग ही शख्सियत थे। 26 जनवरी को कारमल कान्वेंट स्कूल के परिसर में गुलशन अहमद ने छात्रों की मानव श्रृंखला बनवाकर जयहिन्द का नारा व भारत का मानचित्र इतनी खूबसूरती से उकेरा था कि सोशल मीडिया में इसे देखने वाले दंग रह गए। समाज में अलग तरीके के कार्य करने को लेकर गुलशन अहमद विशेष पहचान रखते हैं।
इसके बाद एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने देशभक्ति के जज्बे में ओत-प्रोत नौजवान से बात करने का फैसला लिया। बातचीत में वो अपनी बात पर अडिग रहे। पूछा गया, बच्चों का क्या होगा तो सीधे जवाब में बोले-जब शहीदों के बच्चे जिंदगी को जीना सीख रहे हैं तो उनके बच्चे भी सीख ही लेंगे। उन्होंने कहा कि लोहा ही लोहे को काटता है। अगर आतंकी यह समझते हैं कि मानव बम से हिन्दुस्तान को चोट पहुंचाई जा सकती है तो हम भी यही करने को तैयार हैं।
उल्लेखनीय है कि नौजवान गुलशन अहमद के पिता महरूम गफूर अहमद भी शहर की एक अलग ही शख्सियत थे। 26 जनवरी को कारमल कान्वेंट स्कूल के परिसर में गुलशन अहमद ने छात्रों की मानव श्रृंखला बनवाकर जयहिन्द का नारा व भारत का मानचित्र इतनी खूबसूरती से उकेरा था कि सोशल मीडिया में इसे देखने वाले दंग रह गए। समाज में अलग तरीके के कार्य करने को लेकर गुलशन अहमद विशेष पहचान रखते हैं।
पेशे से शारीरिक शिक्षक गुलशन अहमद ने अपने बूते ही शहर की धरोहर शांति संगम को भी सहेजने का बीड़ा उठाया हुआ है। मुस्लिम-हिन्दू-सिख-ईसाई की आस्था का प्रतीक लखदाता पीर की इस परिवार पर मेहर है, यही परिवार इस स्थान की देखभाल की जिम्मेदारी पीढ़ी दर पीढ़ी उठाता आ रहा है। अपने कॉलेज समय में गुलशन अहमद एनसीसी के पलाटून कमांडर भी रह चुके हैं। यहीं से उन्होंने देशभक्ति का ककहरा सीखा।
ले गए थे तिरंगा….
शिक्षक गुलशन अहमद 15 दिसंबर 2018 को मक्का-मदीना में हज पर गए थे। लेकिन इस बात की जिद भी कि वो तिरंगा भी साथ ले जाएंगे। वहां पहुंचकर जब तिरंगा निकाला तो तैनात सुरक्षा कर्मियों ने इस पर आपत्ति जाहिर की, लेकिन गुलशन अहमद ने यह तय कर रखा था कि सुनहरी पलों की तस्वीरें जरूर कैद करेंगे। उनका कहना है कि व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि वहां पर अधिकतर पाकिस्तानी हैं, जो यह समझते हैं कि केवल वही मुस्लिम है। उन्होंने बताया कि किसी भवन पर तो तिरंगा नहीं फहराया था, लेकिन बाहर निकालकर इसे अपने हाथ से ही फहरा दिया था।
शिक्षक गुलशन अहमद 15 दिसंबर 2018 को मक्का-मदीना में हज पर गए थे। लेकिन इस बात की जिद भी कि वो तिरंगा भी साथ ले जाएंगे। वहां पहुंचकर जब तिरंगा निकाला तो तैनात सुरक्षा कर्मियों ने इस पर आपत्ति जाहिर की, लेकिन गुलशन अहमद ने यह तय कर रखा था कि सुनहरी पलों की तस्वीरें जरूर कैद करेंगे। उनका कहना है कि व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि वहां पर अधिकतर पाकिस्तानी हैं, जो यह समझते हैं कि केवल वही मुस्लिम है। उन्होंने बताया कि किसी भवन पर तो तिरंगा नहीं फहराया था, लेकिन बाहर निकालकर इसे अपने हाथ से ही फहरा दिया था।