ऊंचों ने नीचों से उनके विद्रोह का बदला लेने की ठानी। यह खींच-तान हो ही रही थी कि इस्लाम ने नए सिद्धांतों के साथ पदार्पण किया। वहां ऊँच-नीच का भेद न था। छोटे-बड़े, ऊँच-नीच की कैद न थी, इसलिए नीचों ने इस नए धर्म का बड़े हर्ष से स्वागत किया और गाँव के गाँव मुसलमान हो गए। जहाँ जहाँ सवर्ण हिन्दुओं का अत्याचार जितना ज्यादा था, वहां वहाँ यह विरोधाग्नि भी उतनी ही प्रचंड थी और वहीं इस्लाम की तबलीग भी खूब हुयी। यह है इसलाम के फैलने का इतिहास और आज भी वर्गीय हिन्दू अपने पुराने संस्कारों को नहीं बदल सके हैं, तो इस्लाम तलवार के बल से नहीं, बल्कि अपने धर्म-तत्वों की व्यापकता के बल से फैला।
मुन्शी प्रेमचंद (नवम्बर 1931)