हम तो हैं दरिया हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।
मुजफ्फरनगर – उपरोक्त शेर उर्दू के मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र का है, इस संवाददाता के मुंह से ये लाईनें उस वक्त बरबस ही निकल पड़ती हैं जब उसे एक एसे बाप की बेटी जज बनती है जिसका पच्चीस साल पहले कत्ल हो चुका था। 1992 में वह सिर्फ चाल साल की बच्ची थी, जब उसके पिता की बदमाशों ने बीच बाजार में गोली मारकर हत्या कर दी थी।
लोगों को ईमानदारी की शिक्षा देने वाले पिता को खोने के बाद अंजुम सैफी ने फैसला किया था कि उन्हें अपने मरहूम वालिद का ख्वाब पूरा करना है और अंजुम का ये ख्वाब बीते शुक्रवार को पूरा हो गया। अंजुम सैफी के पिता राशिद अहमद चाहते थे कि उनकी बेटी जज बने और लोगों को इंसाफ दे। अंजुम के पिता और उनकी बेटी का सपना तो पूरा हो गया लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पिता अपनी बेटी को जज बनते नहीं देख पाये।
लोक सेवा आयोग की पीसीएस जे-2016 की परीक्षा में कामियाबी पाने वाले छात्रों की लिस्ट में जब अपना नाम देखा तो उनकी आंखों में खुशी के मारे आंसू भर आये, और वो अपने मरहूम वालिद को याद करने लगीं। अंजुम के पिता राशिद अहमद ईमानदारी के रास्त पर चलने वाले एक सज्जन इंसान थे, उनका गलत लोगों से हमेशा ही गलत कामों को लेकर विवाद रहता था। वे ईमानदारी के साथ रहते और गलत के खिलाफ आवाज उठाते। ईमानदारी के रास्ते पर चलना ही उनकी हत्या का सबब बना।
हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले अंजुम के पिता राशिद अमहद की 25 साल पहले 1992 में बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्या का सबब यह था कि राशिद अहमद ने बदमाशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने बदमाशों के खिलाफ आंदोलन किया, इसी से गुस्साए बदमाशों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
अंजुम बताती हैं कि उन्हें याद है कि उनके पिता उन्हें हमेशा जज बनने का ख्वाब दिखाते थे, वे सिर्फ इसी विषय में बातें किया करते थे। शुक्रवार को आये पीसीएस – जे के नतीजों के बाद जहां अंजुम का परिवार और रिश्तेदार जश्न में डूबे हैं वहीं अंजुम को अपने मरहूम वालिद की बार बार याद आ रही है।
अंजुम की मां हमिदा बेगम ने कहा कि जब से अंजुम ने पीसीएस – जे का रिजल्ट देखा है तब से वह हर किसी से बस अपने पिता के बारे में ही बातें कर रही है। अंजुम अपने दोस्तों से कह रही है ‘काश आज पापा यहां होते ये सब देखने के लिए।’ अंजुम की मां ने बताया कि उन्होंने अपने पांच बेटों और एक बेटी का मुस्तकबिल संवारने के लिये मरहूम पति का मुकदमा वापस ले लिया था। हमीदा बेगम ने कहा कि वे अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाना चाहती थीं, इसलिए अपने पति का केस वापस ले लिया था।
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।
मुजफ्फरनगर – उपरोक्त शेर उर्दू के मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र का है, इस संवाददाता के मुंह से ये लाईनें उस वक्त बरबस ही निकल पड़ती हैं जब उसे एक एसे बाप की बेटी जज बनती है जिसका पच्चीस साल पहले कत्ल हो चुका था। 1992 में वह सिर्फ चाल साल की बच्ची थी, जब उसके पिता की बदमाशों ने बीच बाजार में गोली मारकर हत्या कर दी थी।
लोगों को ईमानदारी की शिक्षा देने वाले पिता को खोने के बाद अंजुम सैफी ने फैसला किया था कि उन्हें अपने मरहूम वालिद का ख्वाब पूरा करना है और अंजुम का ये ख्वाब बीते शुक्रवार को पूरा हो गया। अंजुम सैफी के पिता राशिद अहमद चाहते थे कि उनकी बेटी जज बने और लोगों को इंसाफ दे। अंजुम के पिता और उनकी बेटी का सपना तो पूरा हो गया लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पिता अपनी बेटी को जज बनते नहीं देख पाये।
लोक सेवा आयोग की पीसीएस जे-2016 की परीक्षा में कामियाबी पाने वाले छात्रों की लिस्ट में जब अपना नाम देखा तो उनकी आंखों में खुशी के मारे आंसू भर आये, और वो अपने मरहूम वालिद को याद करने लगीं। अंजुम के पिता राशिद अहमद ईमानदारी के रास्त पर चलने वाले एक सज्जन इंसान थे, उनका गलत लोगों से हमेशा ही गलत कामों को लेकर विवाद रहता था। वे ईमानदारी के साथ रहते और गलत के खिलाफ आवाज उठाते। ईमानदारी के रास्ते पर चलना ही उनकी हत्या का सबब बना।
हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले अंजुम के पिता राशिद अमहद की 25 साल पहले 1992 में बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्या का सबब यह था कि राशिद अहमद ने बदमाशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने बदमाशों के खिलाफ आंदोलन किया, इसी से गुस्साए बदमाशों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
अंजुम बताती हैं कि उन्हें याद है कि उनके पिता उन्हें हमेशा जज बनने का ख्वाब दिखाते थे, वे सिर्फ इसी विषय में बातें किया करते थे। शुक्रवार को आये पीसीएस – जे के नतीजों के बाद जहां अंजुम का परिवार और रिश्तेदार जश्न में डूबे हैं वहीं अंजुम को अपने मरहूम वालिद की बार बार याद आ रही है।
अंजुम की मां हमिदा बेगम ने कहा कि जब से अंजुम ने पीसीएस – जे का रिजल्ट देखा है तब से वह हर किसी से बस अपने पिता के बारे में ही बातें कर रही है। अंजुम अपने दोस्तों से कह रही है ‘काश आज पापा यहां होते ये सब देखने के लिए।’ अंजुम की मां ने बताया कि उन्होंने अपने पांच बेटों और एक बेटी का मुस्तकबिल संवारने के लिये मरहूम पति का मुकदमा वापस ले लिया था। हमीदा बेगम ने कहा कि वे अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाना चाहती थीं, इसलिए अपने पति का केस वापस ले लिया था।