बाराबंकी: कुरआन शरीफ़ अल्लाह तआला की किताब है। इसलिए इसे किताबुल्लाह भी कहा जाता है। इसमें अल्लाह तआला के अहकामात हैं, जिसे अल्लाह के फ़रिश्ते हज़रत जिबराईल अ० स० लेकर आते थे और अल्लाह के रसूल हुज़ूरे अकरम स० अ ० के पास लेकर आते थे। मुकमल कुरआन उतरने मे 23 साल का वक्त लगा था। अल्लाह तआला ने कुरआन की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी खुद ली हुई है। यही वज्ह है कि इसमें क़यामत तक एक हर्फ बराबर तब्दीली भी मुमकिन नहीं। जहाँ कुरआन शरीफ अल्लाह की किताब है वहीं हाफिज़ उल कुरआन है अल्लाह का एक मोजिज़ा है।
वर्ना तीस पारों को हर्फ हर्फ़ याद कर लेना आम इंसान के बस की बात नहीं है। आप को बता दें कि पूरा कुरआन याद कर लेने वाले शख़्स को हाफ़िज़-ए-क़ुरआन का खिताब मिलता है। इसके लिए माँ बाप अपने बच्चों को बहुत कम उम्र मे मदरसों मे पढ़ने भेज देते हैं। ऐसे ही एक बहुत कम उम्र के कुरान हिफ़्ज़ करने की खबर बाराबंकी से आ रही है जिसे सुनकर.खुशी और हैरानी दोनों होती हैं कि इतनी सी छोटी उम्र में किसी ने क़ुरआन को कैसे हिफ़्ज़ कर लिया। एक छोटी सी उम्र की बच्ची ज़ुबैदा रहमान फ़िज़ा ने महज़ 6 साल की उम्र में ही क़ुरआन को मुकम्मल करने का कारनामा किया है।
वह विकास खण्ड दरियाबाद क्षेत्र के ग्राम बरहुवां के रहने वाले ज़िया उर्र हमान उर्फ़ ज़िया की बेटी हैं। इसके बाद से उनके घर मे खुशी का माहौल है। लोगों ने उनके लिए मुबारकबाद पेश की और दुआएं भी दीं। इस्लाम धर्म के अनुसार मुस्लिम समाज के हर एक व्यक्ति चाहे लड़का हो या लड़की छोटा हो या बड़ा कुरआन पढ़ना सब पर फर्ज है।कुरआन पढ़ने वाले लोगों के लिए अल्लाह तआला ने बड़े बड़े अज्र के वादे किये हैं। यहां तक कि कुरआन को देखना और सुनना भी सवाब होता है। कुरआन पाक को पढ़ने वाले व्यक्ति के लिए उसके मरने के बाद कुरआन निजात का जरिया बन सकता है। कुरआन शरीफ़ को पढ़ने से घरों में ख़ैर बरकत तो रहती ही है, साथ ही इसमें बीमारियों से शिफ़ा भी मौजूद है।
वर्ना तीस पारों को हर्फ हर्फ़ याद कर लेना आम इंसान के बस की बात नहीं है। आप को बता दें कि पूरा कुरआन याद कर लेने वाले शख़्स को हाफ़िज़-ए-क़ुरआन का खिताब मिलता है। इसके लिए माँ बाप अपने बच्चों को बहुत कम उम्र मे मदरसों मे पढ़ने भेज देते हैं। ऐसे ही एक बहुत कम उम्र के कुरान हिफ़्ज़ करने की खबर बाराबंकी से आ रही है जिसे सुनकर.खुशी और हैरानी दोनों होती हैं कि इतनी सी छोटी उम्र में किसी ने क़ुरआन को कैसे हिफ़्ज़ कर लिया। एक छोटी सी उम्र की बच्ची ज़ुबैदा रहमान फ़िज़ा ने महज़ 6 साल की उम्र में ही क़ुरआन को मुकम्मल करने का कारनामा किया है।
वह विकास खण्ड दरियाबाद क्षेत्र के ग्राम बरहुवां के रहने वाले ज़िया उर्र हमान उर्फ़ ज़िया की बेटी हैं। इसके बाद से उनके घर मे खुशी का माहौल है। लोगों ने उनके लिए मुबारकबाद पेश की और दुआएं भी दीं। इस्लाम धर्म के अनुसार मुस्लिम समाज के हर एक व्यक्ति चाहे लड़का हो या लड़की छोटा हो या बड़ा कुरआन पढ़ना सब पर फर्ज है।कुरआन पढ़ने वाले लोगों के लिए अल्लाह तआला ने बड़े बड़े अज्र के वादे किये हैं। यहां तक कि कुरआन को देखना और सुनना भी सवाब होता है। कुरआन पाक को पढ़ने वाले व्यक्ति के लिए उसके मरने के बाद कुरआन निजात का जरिया बन सकता है। कुरआन शरीफ़ को पढ़ने से घरों में ख़ैर बरकत तो रहती ही है, साथ ही इसमें बीमारियों से शिफ़ा भी मौजूद है।