सुरेश कहते हैं कि एक पुलिस अधिकारी उन्हें उठाकर पुलिस स्टेशन ले गया और दस लाख रुपए का लालच दिया। उनसे कहा कि बेटे के हत्यारे के रूप में वह किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम ले लें।
रामलीला मैदान में रविवार (13 जनवरी, 2019) को दो अप्रैल, 2018 में भारत बंद के दौरान मारे गए दलितों की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गाजियाबाद के सत्यशोधक संघ, भीम आर्मी के एक गुट द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में मृतकों और घायलों के परिजनों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पहुंचे कई पीड़ितों ने इस दौरान अपनी आप बीती सुनाई। द टेलीग्राफ में छपी एक खबर के मुताबिक ऐसे ही एक पीड़ित सुरेश कुमार ने कहा कि उनके बेटे को एक पुलिस अधिकारी ने गोली मार दी और बदले में उनसे कहा गया कि वह दलित युवक के हत्यारे के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम ले लें। इसके बदले में उन्हें दस लाख रुपए की पेशकश की गई।
ऐसे ही एक और पुलिस की गोली का शिकार हुए दिहाड़ी मजदूर कहते हैं कि उन्हें भाजपा सरकार से किसी मुआवजे की उम्मीद नहीं है। कुमार कहते हैं कि पुलिस की गोली लगने की वजह से वह अब मजदूरी करने में भी सक्षम नहीं हैं। रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए बहुत से दलितों ने अन्याय और कठिनाईयों की कई कहानियां बताईं। ये वो लोग हैं जिन्होंने भारत बंद में किसी ना किसी रूप से हिस्सा लिया और प्रशासन की क्रूरता का शिकार हुए। इस विरोध प्रदर्शन में 13 लोगों की जान चली गई जबकि दो हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। रामलीला मैदान में इनके परिजनों को बहुजन सम्मान महासभा में सम्मानित किया गया।
जानना चाहिए कि 13 अप्रैल को हड़ताल के दौरान पुलिस गोलीबारी में दस लोगों की मौत हो गई। ये लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के खिलाफ विरोध कर रहे थे। विरोध के दौरान एक बच्ची की मौत जलती बाइक में गिरने की वजह से हो गई। इसके अलावा दो लोगों की मौत कथित तौर पर ऊंचि जाति द्वारा दो दिन बाद हिंसा में हो गई थी। इसीलिए रामलीला मैदान के आयोजन में 13 ‘शहीद भीम सैनिकों’ की मूर्तियां लगाई गईं। इन मूर्तियों को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बुद्ध और सम्राट अशोक की बड़ी मूर्तियों के सामने रखा गया जिन्हें बाद में पीड़ितों के मूल स्थानों पर ले जाया जाएगा।
अपने बेटे को खो चुके यूपी के मुजफ्फरनगर स्थित गोडला गांव में रहने वाले सुरेश कुमार (60) ने बताया कि कैसे उस दिन हड़ताल के दौरान उनके 22 वर्षीय बेटे अमरेश की मौत हो गई। पेशे मजदूर सुरेश कहते हैं, ‘वो भी मेरी तरह दिहाड़ी मजदूर था और शहर में काम की तलाश में गया था। काम नहीं लगा तो मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन पर आ गया, जहां हमारे (जाटव) कुछ लड़के प्रदर्शन कर रहे थे।’ सुरेश कहते हैं, ‘हमारे लड़कों ने बताया कि उसे एक पुलिस अधिकारी ने सीने पर गोली मारी थी। प्रदर्शनकारी इसे हाथ से चलने वाले ठेले पर सरकारी हॉस्पिटल में लेकर गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका।’
सुरेश की एक बेटी और दो बेटे और हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। उन्हें सरकार ने किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया। सुरेश ने दावा किया बेटे की मौत का आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर उन्हें न्यू मंडी पुलिस स्टेशन उठाकर ले आया। सुरेश कहते हैं, ‘उन्होंने मुझसे बेटे के हत्यारे के संदिग्ध के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम लेने को कहा। कहा गया कि अगर मैं ऐसा करता हूं तो इसके बदले में मुझे दस लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा। मैंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं शांति चाहता हूं तो किसी का तो नाम लेना ही पड़ेगा। इसपर मैंने उस पुलिसवाले कहा कि मैं जानता हूं कि तुमने ही मेरे बेटे को मारा है।’
द टेलीग्राफ के मुताबिक सुरेश आगे कहते हैं, ‘मेरे इनकार के बाद मुझे जातिगत गालियां दी गई, बाहरी व्यक्ति कहा गया। मुझे पीटने की धमकी दी गईं। हालांकि मैंने उसे चेतावनी दी कि उसकी शिकायत करुंगा। इसके बाद पुलिस ने एक दलित युवक राम शरण को उस हिंसा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जिसमें अमरेश की मौत हुई।’ सुरेश आगे कहते हैं, ‘मैं अपने बेटे के लिए इंसाफ की लड़ाई नहीं लड़ सकता। हमारे किसी पड़ोसियों ने भी हमारी मदद नहीं की।’
ऐसे ही अनूप कुमार (22) और अशोक कुमार (27) हैं, जो हरियाणा में दिहाड़ी मजदूर हैं। 2 अप्रैल को ये भी घायल हुए थे। अनूप जो ओपन स्कूल से बीए कर रहे हैं, ने बताया कि उन्हें स्कूल में जातिगत दुर्भावना और भेदभाव का सामना करना पड़ा। अशोक कहते हैं कि उन्हें अपने ही गांव में चाय की दुकान में चाय पीने के लिए खुद के घर से कप लाने को मजबूर होना पड़ा है। इस मामले में अत्याचार अधिनियम के तहत केस ही दर्ज नहीं हुआ। अशोक कहते हैं, ‘मैं प्रदर्शन में गया ताकि मेरे बच्चों को इस अधिनियम का अधिकार हो। यह एक बड़ा प्रदर्शन था और पुलिस ने गोलियां चलाईं। मुझे भी गोली लगी।’
अनूप कहते हैं कि उन्हें एक गुंडे ने गोली मारी जो उनकी जांघ पर लगी जबकि अशोक के शरीर के पिछले हिस्से में गोली मारी गई। उन्हें अभी तक इसका मुआवजा नहीं मिला। यहां किसी भी राजनीतिक पार्टी ने उनसे संपर्क नहीं किया। इसमें उनकी बीएसपी भी शामिल है।
रामलीला मैदान में रविवार (13 जनवरी, 2019) को दो अप्रैल, 2018 में भारत बंद के दौरान मारे गए दलितों की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गाजियाबाद के सत्यशोधक संघ, भीम आर्मी के एक गुट द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में मृतकों और घायलों के परिजनों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पहुंचे कई पीड़ितों ने इस दौरान अपनी आप बीती सुनाई। द टेलीग्राफ में छपी एक खबर के मुताबिक ऐसे ही एक पीड़ित सुरेश कुमार ने कहा कि उनके बेटे को एक पुलिस अधिकारी ने गोली मार दी और बदले में उनसे कहा गया कि वह दलित युवक के हत्यारे के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम ले लें। इसके बदले में उन्हें दस लाख रुपए की पेशकश की गई।
ऐसे ही एक और पुलिस की गोली का शिकार हुए दिहाड़ी मजदूर कहते हैं कि उन्हें भाजपा सरकार से किसी मुआवजे की उम्मीद नहीं है। कुमार कहते हैं कि पुलिस की गोली लगने की वजह से वह अब मजदूरी करने में भी सक्षम नहीं हैं। रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए बहुत से दलितों ने अन्याय और कठिनाईयों की कई कहानियां बताईं। ये वो लोग हैं जिन्होंने भारत बंद में किसी ना किसी रूप से हिस्सा लिया और प्रशासन की क्रूरता का शिकार हुए। इस विरोध प्रदर्शन में 13 लोगों की जान चली गई जबकि दो हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। रामलीला मैदान में इनके परिजनों को बहुजन सम्मान महासभा में सम्मानित किया गया।
जानना चाहिए कि 13 अप्रैल को हड़ताल के दौरान पुलिस गोलीबारी में दस लोगों की मौत हो गई। ये लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के खिलाफ विरोध कर रहे थे। विरोध के दौरान एक बच्ची की मौत जलती बाइक में गिरने की वजह से हो गई। इसके अलावा दो लोगों की मौत कथित तौर पर ऊंचि जाति द्वारा दो दिन बाद हिंसा में हो गई थी। इसीलिए रामलीला मैदान के आयोजन में 13 ‘शहीद भीम सैनिकों’ की मूर्तियां लगाई गईं। इन मूर्तियों को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बुद्ध और सम्राट अशोक की बड़ी मूर्तियों के सामने रखा गया जिन्हें बाद में पीड़ितों के मूल स्थानों पर ले जाया जाएगा।
अपने बेटे को खो चुके यूपी के मुजफ्फरनगर स्थित गोडला गांव में रहने वाले सुरेश कुमार (60) ने बताया कि कैसे उस दिन हड़ताल के दौरान उनके 22 वर्षीय बेटे अमरेश की मौत हो गई। पेशे मजदूर सुरेश कहते हैं, ‘वो भी मेरी तरह दिहाड़ी मजदूर था और शहर में काम की तलाश में गया था। काम नहीं लगा तो मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन पर आ गया, जहां हमारे (जाटव) कुछ लड़के प्रदर्शन कर रहे थे।’ सुरेश कहते हैं, ‘हमारे लड़कों ने बताया कि उसे एक पुलिस अधिकारी ने सीने पर गोली मारी थी। प्रदर्शनकारी इसे हाथ से चलने वाले ठेले पर सरकारी हॉस्पिटल में लेकर गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका।’
सुरेश की एक बेटी और दो बेटे और हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। उन्हें सरकार ने किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया। सुरेश ने दावा किया बेटे की मौत का आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर उन्हें न्यू मंडी पुलिस स्टेशन उठाकर ले आया। सुरेश कहते हैं, ‘उन्होंने मुझसे बेटे के हत्यारे के संदिग्ध के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम लेने को कहा। कहा गया कि अगर मैं ऐसा करता हूं तो इसके बदले में मुझे दस लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा। मैंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं शांति चाहता हूं तो किसी का तो नाम लेना ही पड़ेगा। इसपर मैंने उस पुलिसवाले कहा कि मैं जानता हूं कि तुमने ही मेरे बेटे को मारा है।’
द टेलीग्राफ के मुताबिक सुरेश आगे कहते हैं, ‘मेरे इनकार के बाद मुझे जातिगत गालियां दी गई, बाहरी व्यक्ति कहा गया। मुझे पीटने की धमकी दी गईं। हालांकि मैंने उसे चेतावनी दी कि उसकी शिकायत करुंगा। इसके बाद पुलिस ने एक दलित युवक राम शरण को उस हिंसा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जिसमें अमरेश की मौत हुई।’ सुरेश आगे कहते हैं, ‘मैं अपने बेटे के लिए इंसाफ की लड़ाई नहीं लड़ सकता। हमारे किसी पड़ोसियों ने भी हमारी मदद नहीं की।’
ऐसे ही अनूप कुमार (22) और अशोक कुमार (27) हैं, जो हरियाणा में दिहाड़ी मजदूर हैं। 2 अप्रैल को ये भी घायल हुए थे। अनूप जो ओपन स्कूल से बीए कर रहे हैं, ने बताया कि उन्हें स्कूल में जातिगत दुर्भावना और भेदभाव का सामना करना पड़ा। अशोक कहते हैं कि उन्हें अपने ही गांव में चाय की दुकान में चाय पीने के लिए खुद के घर से कप लाने को मजबूर होना पड़ा है। इस मामले में अत्याचार अधिनियम के तहत केस ही दर्ज नहीं हुआ। अशोक कहते हैं, ‘मैं प्रदर्शन में गया ताकि मेरे बच्चों को इस अधिनियम का अधिकार हो। यह एक बड़ा प्रदर्शन था और पुलिस ने गोलियां चलाईं। मुझे भी गोली लगी।’
अनूप कहते हैं कि उन्हें एक गुंडे ने गोली मारी जो उनकी जांघ पर लगी जबकि अशोक के शरीर के पिछले हिस्से में गोली मारी गई। उन्हें अभी तक इसका मुआवजा नहीं मिला। यहां किसी भी राजनीतिक पार्टी ने उनसे संपर्क नहीं किया। इसमें उनकी बीएसपी भी शामिल है।