हैदराबाद के सैयद उस्मान अजहर मख़सोसी रोजाना गरीबों को फ्री में खाना खिलाते हैं, वह यह नेक काम पिछले छ साल से कर रहे हैं,और आज भी उनका जज़्बा ज़िंदा है,वह इस काम से कभी थकते नहीं हैं,वह लगातार यह नेक काम करते जा रहे हैं, उनके इस नेक काम की चर्चा हर तरफ होती रहती है। अज़हर एक ऐसे नौजवान हैं जिन्होंने बेड़ा उठाया है ग़रीबों और बे सहाराओं को खाना खिलाने का। अज़हर मख़सोसी का ताल्लुक़ हैदराबाद के इलाक़ा दुबैर पूरा से है। दुबैर पूरा फ़्लाई ओवर के पास उनकी एक छोटी सी प्लास्टर आफ़ पैरिस (POP) डिज़ाइन की दुकान है।
इन्होंने छ साल पहले शुरूआत की ग़रीबों और ज़रूरतमंदों में मुफ़्त खाने की। ऐसे वक़्त जब हर किसी को अपने खाने की फ़िक्र है इन्होंने दूसरों के खाने का इंतिज़ाम किया है। यक़ीनन भूकों को खाना खिलाना एक अच्छा काम है जिसकी बे शुमार सताइश की जानी चाहे। हिंदुस्तान में कई लोग जिनके पास अरबों और करोड़ों रुपय हैं , लेकिन उन्हें ग़रीबों और बे-सहारों को खाना खिलाने का ख़्याल तक नहीं आता। अज़हर ने मुस्तक़बिल के बारे में बग़ैर कोई तशवीश में मुबतला हुए खाना खिलाने का अमल शुरू कर दिया।
उनसे जब इस काम के आग़ाज़ के बारे में सवाल किया गया तो इन्होंने बताया, मैंने उर्दू मीडियम गर्वनमैंट स्कूल से पाँचवीं जमात तक तालीम हासिल की है। बचपन में मुसीबत के दिन भी देखने को मिले। एक दफ़ा में रेलवे स्टेशन के पास से जा रहा था तो मैं ने देखा एक औरत जिसका नाम लक्ष्मी था वो ज़ोर ज़ोर से रो रही थी। इस के दोनों पैर नहीं थे। मैंने वहां मौजूद एक आदमी से पूछा ये क्यों रो रही है उसने कहा कि ये भूक से रो रही है और इस के पास खाना नहीं है।
मैंने कहा तो तुम उसे कुछ क्यों नहीं दे देते। उसने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है और में भी भूका हूँ। मैंने जब ही दिल में अल्लाह से ये दुआ कि अगर मुझसे कोई काम लेना चाहता है तो ग़रीबों की भूक मिटाने का काम ले-ले। इस के बाद मैंने होटल से खाने का पार्सल लाया और इस ग़रीब को खिलाया।
इस वाक़िया के बाद अक्सर अज़हर के दिल में बेसहारा लोगों का दर्द सताने लगता था। इन्होंने ना पहले घर में खाना बनाया और उसे गरीबो में तक़सीम किया। ये रोज़ का मामूल बन गया । 2012से बाज़ाबता तौर पर खाना खिलाने का काम शुरू हुआ। दुबैर पूरा फ़्लाई ओवर बरीज के नीचे रेलवे स्टेशन से क़रीब काफ़ी ग़रीब और बे-घर लोग जमा हो जाते हैं और इस दिन से आज तक बिला नागा ये काम जारी है ।
फ़लाही काम करने के लिए काफ़ी मुश्किलें आती हैं। सबसे बड़ी माली परेशानी होती है। अक्सर लोगों के पास पैसा होता है, लेकिन फ़लाही कामों से दिलचस्पी नहीं होती है और किसी के पास फ़लाही के बारे में दिलचस्पी होती है लेकिन उनके पास पैसा नहीं होता। जिनके इरादे मज़बूत होते हैं और जो दूसरों के लिए कुछ करने का अज़म कर लेते हैं उनके सामने कोई मुश्किल टिक नहीं सकती।
अज़हर मख़सोसी ने अपनी मुश्किलों के बारे में पूछने पर बताया, जब आप इरादा कर लेते हैं तो सारी मुश्किलें आसान हो जाती हैं। मेरी वालिदा ने मुझे कहा कि दूसरों की मदद करना असल कामयाबी है और मैं इसी पर अमल कर रहा हूँ। जो कुछ मुझसे हो सकता है वो करने की कोशिश कर रहा हूँ। जब हम कोई काम शुरू कर देते हैं तो ख़ुद बख़ुद रास्ते भी खुल जाते हैं। एक दफ़ा एक साहिब जिनका ताल्लुक़ यूके से है फ़्लाई ओवर के पास से गुज़र रहे थे। इन्होंने ये मंज़र देखा और अपने भाई से कहा कि ज़रा नौजवान के बारे में मालूम करें। सारी जानकारी हासिल करने के बाद इन्होंने मुझसे कहा कि में भी आपके काम में कुछ तआवुन करना चाहूँगा। मैंने कहा अगर आप ख़ुद से कुछ तआवुन हासिल करना चाहते हैं तो हम ख़ुश-आमदीद कहेंगे क्योंकि ये अल्लाह की जानिब से मदद है। इन्होंने 16 चावल के थैले 25 ,25 किलो के रवाना किए । इस तरह फ़लाही काम में लोगों का तआवुन भी शामिल होने लगा
इन्होंने छ साल पहले शुरूआत की ग़रीबों और ज़रूरतमंदों में मुफ़्त खाने की। ऐसे वक़्त जब हर किसी को अपने खाने की फ़िक्र है इन्होंने दूसरों के खाने का इंतिज़ाम किया है। यक़ीनन भूकों को खाना खिलाना एक अच्छा काम है जिसकी बे शुमार सताइश की जानी चाहे। हिंदुस्तान में कई लोग जिनके पास अरबों और करोड़ों रुपय हैं , लेकिन उन्हें ग़रीबों और बे-सहारों को खाना खिलाने का ख़्याल तक नहीं आता। अज़हर ने मुस्तक़बिल के बारे में बग़ैर कोई तशवीश में मुबतला हुए खाना खिलाने का अमल शुरू कर दिया।
उनसे जब इस काम के आग़ाज़ के बारे में सवाल किया गया तो इन्होंने बताया, मैंने उर्दू मीडियम गर्वनमैंट स्कूल से पाँचवीं जमात तक तालीम हासिल की है। बचपन में मुसीबत के दिन भी देखने को मिले। एक दफ़ा में रेलवे स्टेशन के पास से जा रहा था तो मैं ने देखा एक औरत जिसका नाम लक्ष्मी था वो ज़ोर ज़ोर से रो रही थी। इस के दोनों पैर नहीं थे। मैंने वहां मौजूद एक आदमी से पूछा ये क्यों रो रही है उसने कहा कि ये भूक से रो रही है और इस के पास खाना नहीं है।
मैंने कहा तो तुम उसे कुछ क्यों नहीं दे देते। उसने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है और में भी भूका हूँ। मैंने जब ही दिल में अल्लाह से ये दुआ कि अगर मुझसे कोई काम लेना चाहता है तो ग़रीबों की भूक मिटाने का काम ले-ले। इस के बाद मैंने होटल से खाने का पार्सल लाया और इस ग़रीब को खिलाया।
इस वाक़िया के बाद अक्सर अज़हर के दिल में बेसहारा लोगों का दर्द सताने लगता था। इन्होंने ना पहले घर में खाना बनाया और उसे गरीबो में तक़सीम किया। ये रोज़ का मामूल बन गया । 2012से बाज़ाबता तौर पर खाना खिलाने का काम शुरू हुआ। दुबैर पूरा फ़्लाई ओवर बरीज के नीचे रेलवे स्टेशन से क़रीब काफ़ी ग़रीब और बे-घर लोग जमा हो जाते हैं और इस दिन से आज तक बिला नागा ये काम जारी है ।
फ़लाही काम करने के लिए काफ़ी मुश्किलें आती हैं। सबसे बड़ी माली परेशानी होती है। अक्सर लोगों के पास पैसा होता है, लेकिन फ़लाही कामों से दिलचस्पी नहीं होती है और किसी के पास फ़लाही के बारे में दिलचस्पी होती है लेकिन उनके पास पैसा नहीं होता। जिनके इरादे मज़बूत होते हैं और जो दूसरों के लिए कुछ करने का अज़म कर लेते हैं उनके सामने कोई मुश्किल टिक नहीं सकती।
Loading...