फ़्रांस के विदेश मंत्री जान एफ़ लोदरियान ने यह सही कहा कि इस समय फ़िलिस्तीन से संबंधित डील आफ़ सेंचुरी नामक योजना टेबल पर नहीं है।
इसलिए नहीं कि फ़िलिस्तीनियों का हर धड़ा इसे खारिज कर चुका है बल्कि इसलिए टेबल पर नहीं है कि इलाक़ा उस चरण को पार कर चुका है बल्कि ख़ुद फ़िलिस्तीनी मुद्दे से भी आगे बढ़ चुका है और यह सब कुछ अरब सरकारों की वजह से हुआ है जिन्होंने इस्राईल की गोद में जा बैठने की नीति अपना ली है और अपने इस नए रुजहान में उन्हें फ़िलिस्तीन की कोई चिंता ही नहीं है अतः वह इस्राईल के सामने कोई शर्त भी रखने के लिए तैयार नहीं हैं।
अरब सरकारों को अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना होगी या नहीं, उन्हें तो यह पसंद है कि इस्राईल से दोस्ती को आगे बढ़ाएं और अलग अगल मामलों में इस्राईल की मदद लें।
एक बड़ी डील आफ़ सेंचुरी को शायद अंतिम रूप वार्सा सम्मेलन में देने की तैयारी चल रही है जिसकी दावत अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने दी है और इसका न्योता लेकर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो इस समय पश्चिमी एशिया के इलाक़े पर आए हैं और क्षेत्र की अरब सरकारों को एक अरब सुन्नी नैटो के गठन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
अरब सरकारों को डराया भी जा रहा है कि उनके सामने ईरान का ख़तरा मौजूद है अतः उन्हें चाहिए कि तत्काल एकजुट हो जाएं। कुछ दिन पहले माइक पोम्पेयो ने क़हेरा के अमेरिकन विश्वविद्यालय में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने फ़िलिस्तीन मुद्दे को उठाने की ज़रूरत नहीं समझी बस चार शब्दों में उन्होंने फ़िलिस्तीन के बारे में बात की वह भी बिल्कुल सांकेतिक रूप से।
टू स्टेट समाधान की कोई बात नहीं की। इसलिए कि इलाक़े और दुनिया के स्तर पर घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में अब यह मुद्दा शामिल ही नहीं है और इससे विश्व शांति को कोई ख़तरा नहीं रह गया है क्योंकि इस मुद्दे के अलग अलग पक्ष अब इस्राईल से लड़ने के बजाए आपस में लड़ रहे हैं।
महमूद अब्बास की तमन्ना है कि हमास का विनाश हो जाए और हमास की सारी कोशिश यह है कि महमूद अब्बास की क़ानूनी मान्यता समाप्त हो जाए और वह सत्ता से बाहर निकल जाएं।
मध्यपूर्व के इलाक़े में ईरान के बढ़ते प्रभाव को रोकने पर चर्चा के लिए होने जा रहा वार्सा सम्मेलन हमें उस एलायंस की याद दिलाता है जो अमरीका के नेतृत्व में दाइश से लड़ने के लिए बना था। उसमें 70 से अधिक देश शामिल हुए थे, अरब देशों ने इस एलायंस के लिए क़ानून, अरब और इस्लामी कवर उपलब्ध कराया था जबकि इस एलायंस के लिए अमरीका निर्मित अपने एफ़-16 युद्धक विमान भी भेजे थे।
14 फ़रवरी को जिस बड़ी डील आफ़ सेंचुरी की वार्सा में घोषणा होने जा रही है उसका लक्ष्य ईरान तथा इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चा होगा तथा इससे उन संगठनों को निशाना बनाया जाएगा जो सीरिया, इराक़, लेबनान और फ़िलिस्तीन में इस्लामी प्रतिरोध शक्ति के रूप में काम कर रहे हैं और अमरीका तथा इस्राईल की नीतियों लिए गंभीर चुनौती बने हुए हैं।
ईरान के ख़िलाफ़ जो एलायंस बनाया जा रहा है उसमें सुन्नी अरब देशों के साथ ही इस्राईल को भी शामिल किया जाएगा जबकि उस पर अमरीकी और यूरोपीय रंग भी होगा। इस बैठक के लिए बहुत सोच समझ कर पोलैंड का चयन किया गया है जहां रूस को निशाने पर लेने वाले अमरीकी परमाणु मिसाइलों को तैनात किया गया है। यह एक तरह से रूस को भी धमकी देने की कोशिश है।
डील आफ़ सेंचुरी जिसका ख़ाका इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू न तैयार किया है, जिसे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद जेयर्ड कुशनर ने समर्थन दिया है साथ ही सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने जिसकी मार्केटिंग की कोशिश की है वह पूरी तरह नाकाम हो गई क्योंकि फ़िलिस्तीनियों ने इस डील को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया इसलिए कि इसका लक्ष्य फ़िलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लि दफ़्न कर देना था। वार्सा डील भी इसी तरह नाकाम होगी और उसका भी वही अंजाम होगा जो फ़्रेन्ड्ज़ आफ़ सीरिया के नाम से बने गठबंन का हुआ था।
मध्यपूर्व के इलाक़े में मौजूद इस्लामी प्रतिरोध मोर्चा कोई दाइश संगठन नहीं है इसलिए कि यह मोर्चा ईरान से लेकर इराक़, सीरिया, लेबनान और फ़िलिस्तीन तक फैचा हुआ है और इसने जिस लड़ाई में भी क़दम रखा है उसे जीत लिया है।
इस मोर्चे के पास ग़ज़ब की इच्छा शक्ति और रणकौशल है। इसलिए हम वार्सा डील की मौत का पहले ही जश्न मना रहे हैं। हमने फ़्रेंन्ड्ज़ आफ़ सीरिया के नाम से बने ढोंगी गठबंधन के टूटने पर भी जश्न मनाया था।
इसलिए नहीं कि फ़िलिस्तीनियों का हर धड़ा इसे खारिज कर चुका है बल्कि इसलिए टेबल पर नहीं है कि इलाक़ा उस चरण को पार कर चुका है बल्कि ख़ुद फ़िलिस्तीनी मुद्दे से भी आगे बढ़ चुका है और यह सब कुछ अरब सरकारों की वजह से हुआ है जिन्होंने इस्राईल की गोद में जा बैठने की नीति अपना ली है और अपने इस नए रुजहान में उन्हें फ़िलिस्तीन की कोई चिंता ही नहीं है अतः वह इस्राईल के सामने कोई शर्त भी रखने के लिए तैयार नहीं हैं।
अरब सरकारों को अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना होगी या नहीं, उन्हें तो यह पसंद है कि इस्राईल से दोस्ती को आगे बढ़ाएं और अलग अगल मामलों में इस्राईल की मदद लें।
एक बड़ी डील आफ़ सेंचुरी को शायद अंतिम रूप वार्सा सम्मेलन में देने की तैयारी चल रही है जिसकी दावत अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने दी है और इसका न्योता लेकर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो इस समय पश्चिमी एशिया के इलाक़े पर आए हैं और क्षेत्र की अरब सरकारों को एक अरब सुन्नी नैटो के गठन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
अरब सरकारों को डराया भी जा रहा है कि उनके सामने ईरान का ख़तरा मौजूद है अतः उन्हें चाहिए कि तत्काल एकजुट हो जाएं। कुछ दिन पहले माइक पोम्पेयो ने क़हेरा के अमेरिकन विश्वविद्यालय में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने फ़िलिस्तीन मुद्दे को उठाने की ज़रूरत नहीं समझी बस चार शब्दों में उन्होंने फ़िलिस्तीन के बारे में बात की वह भी बिल्कुल सांकेतिक रूप से।
टू स्टेट समाधान की कोई बात नहीं की। इसलिए कि इलाक़े और दुनिया के स्तर पर घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में अब यह मुद्दा शामिल ही नहीं है और इससे विश्व शांति को कोई ख़तरा नहीं रह गया है क्योंकि इस मुद्दे के अलग अलग पक्ष अब इस्राईल से लड़ने के बजाए आपस में लड़ रहे हैं।
महमूद अब्बास की तमन्ना है कि हमास का विनाश हो जाए और हमास की सारी कोशिश यह है कि महमूद अब्बास की क़ानूनी मान्यता समाप्त हो जाए और वह सत्ता से बाहर निकल जाएं।
मध्यपूर्व के इलाक़े में ईरान के बढ़ते प्रभाव को रोकने पर चर्चा के लिए होने जा रहा वार्सा सम्मेलन हमें उस एलायंस की याद दिलाता है जो अमरीका के नेतृत्व में दाइश से लड़ने के लिए बना था। उसमें 70 से अधिक देश शामिल हुए थे, अरब देशों ने इस एलायंस के लिए क़ानून, अरब और इस्लामी कवर उपलब्ध कराया था जबकि इस एलायंस के लिए अमरीका निर्मित अपने एफ़-16 युद्धक विमान भी भेजे थे।
14 फ़रवरी को जिस बड़ी डील आफ़ सेंचुरी की वार्सा में घोषणा होने जा रही है उसका लक्ष्य ईरान तथा इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चा होगा तथा इससे उन संगठनों को निशाना बनाया जाएगा जो सीरिया, इराक़, लेबनान और फ़िलिस्तीन में इस्लामी प्रतिरोध शक्ति के रूप में काम कर रहे हैं और अमरीका तथा इस्राईल की नीतियों लिए गंभीर चुनौती बने हुए हैं।
ईरान के ख़िलाफ़ जो एलायंस बनाया जा रहा है उसमें सुन्नी अरब देशों के साथ ही इस्राईल को भी शामिल किया जाएगा जबकि उस पर अमरीकी और यूरोपीय रंग भी होगा। इस बैठक के लिए बहुत सोच समझ कर पोलैंड का चयन किया गया है जहां रूस को निशाने पर लेने वाले अमरीकी परमाणु मिसाइलों को तैनात किया गया है। यह एक तरह से रूस को भी धमकी देने की कोशिश है।
डील आफ़ सेंचुरी जिसका ख़ाका इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू न तैयार किया है, जिसे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद जेयर्ड कुशनर ने समर्थन दिया है साथ ही सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने जिसकी मार्केटिंग की कोशिश की है वह पूरी तरह नाकाम हो गई क्योंकि फ़िलिस्तीनियों ने इस डील को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया इसलिए कि इसका लक्ष्य फ़िलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लि दफ़्न कर देना था। वार्सा डील भी इसी तरह नाकाम होगी और उसका भी वही अंजाम होगा जो फ़्रेन्ड्ज़ आफ़ सीरिया के नाम से बने गठबंन का हुआ था।
मध्यपूर्व के इलाक़े में मौजूद इस्लामी प्रतिरोध मोर्चा कोई दाइश संगठन नहीं है इसलिए कि यह मोर्चा ईरान से लेकर इराक़, सीरिया, लेबनान और फ़िलिस्तीन तक फैचा हुआ है और इसने जिस लड़ाई में भी क़दम रखा है उसे जीत लिया है।
इस मोर्चे के पास ग़ज़ब की इच्छा शक्ति और रणकौशल है। इसलिए हम वार्सा डील की मौत का पहले ही जश्न मना रहे हैं। हमने फ़्रेंन्ड्ज़ आफ़ सीरिया के नाम से बने ढोंगी गठबंधन के टूटने पर भी जश्न मनाया था।