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There is, one knows not what sweet mystery about this sea, whose gently awful stirrings seem to speak of some hidden soul beneath; like those fabled undulations of the Ephesian sod over the buried Evangelist St. John. And meet it is, that over these sea-pastures
Contrary to popular belief, Lorem Ipsum is not simply random text. It has roots in a piece of classical Latin literature from 45 BC, making it over 2000 years old. Richard McClintock, a Latin professor at Hampden-Sydney College in Virginia

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    बिहार के बड़े नेता की बेटी ने अपनाया इस्लाम धर्म, प्रिया रानी से हुई फ़ातिमा!

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    बिहार के एक बड़े नेता श्रवण कुमार की बेटी ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और अपना नाम रानी से बदलकर फातिमा रख लिया है।
    प्रिया रानी से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ये मेरी खुद की मर्जी है कि मै इसलाम धर्म को मानू, इस का फैसला मैंने खूब सोच समझ कर किया है| किसी ने भी मुझ पर न कोई दबाव डाला है और न ही किसी प्रलोभन में मैंने ऐसा किया है|
    प्रिया से फ़ातिमा बानी महिला ने बताया कि वो अपने पति से काफी परेशान थी, मेरा पती मुझे कई बार मारने की भी कोशिस कर चुका है, इस बीच मुझे सादिक अली नाम के युवक से प्रेम हुआ और में उसी के साथ जिंदगी बिताउंगी।
    प्रेम का ये संबंध शादी तक पहुच गया, सादिक़ अली शादी करने के बाद प्रिया ने इस्लाम कबूल कर अपना नाम फातिमा रख लिया है । बात पुलिस तक पहुच गयी तो प्रिया ने साफ साफ कह दिया कि वह सादिक के साथ ही रहेगी।और अब वह इस्लाम अपना चुकी हैं|
    आपको बता दें कि प्रिया और विनोद शादी के बाद ओमान में ही रहते थे वहां प्रिया को ज्यादा परेशान किया गया तो प्रिया ने आत्महत्या करने की सोची पर बच्चों की खातिर उसने ऐसा नही किया।
    =======
    #मुर्दे_सुनते_है : मौत का झटका
    हजरत बिश्र बिन मंसूर रहमतुल्लाही अलैहि से रिवायत है कि एक आदमी कब्रस्तान में आया जाया करता था और जनाजों में शिरकत किया करता था जब शाम होती तो कब्रिस्तान के दरवाजे पर खड़ा होकर कहा करता
    तर्जुमा-अल्लाह तुम्हारे पागलपन को मोहब्बत में बदल दे तुम्हारे गुनाह माफ कर दे और तुम्हारी नीतियों को कुबूल करें
    उस आदमी का बयान है एक रात वह कब्रों पर ना जा सका और अपने घर आ गया जब वह सोया तो अचानक एक जमात उसके पास आई उसने पूछा तुम कौन हो और क्या चाहते हो उन्होंने जवाब दिया हम कब्रिस्तान के मुर्दे हैं तूने हमको इस हदिए का आदी बना दिया जो तू कब्रिस्तान के दरवाजे पर खड़ा होकर दुआ किया करता था
    आज हमें वह चीज नहीं मिली इसीलिए हम यहीं आए हैं उस आदमी का बयान है कि उसने मुर्दों से वादा किया कि अब वह बराबर हाजिर होकर दुआ करता रहेगा चुनांचे वह जिंदगी भर ऐसा ही करता रहा(बैहिक़ी)

    मौत का झटका
    ==========
    नमाज मे हइय्या अल्ल सला पै खडा होना कैसा है
    ✏. वुखारी शरीफ जिल्द 2 मे तकरीवन 13 हदीसो से साबित है कि हइय्या अल्ल सला पै खडा होना नवी करीम (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) और सहाबाओं की सुन्नत है 
    ✏ हजरत इमाम हसन (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) से रिवायत है कि हइय्या अल्ल सला पै उठना चाहिये और हइय्या अल्ल फला तक खडा हो जाना चाहिये 
    (मिश्कात शरीफ)
    ✏. कोई भी वद अकीदा या किसी भी मस्लक का कही से भी ये साबित करदे कि नवी या कोई भी सहाबा सुरू इकामत पै खडे हौते थे 
    खुदा की कसम पूरी जिंदगी गुजर जायेगी कही से भी साबित नही कर सकता 
    ✏. खुद अशरफ अली थानवी कहेते है की हइय्या अल्ल सला पै खडा होना अदव मे से है 
    (अरकाने इस्लाम सफा 97)
    ✏. एक तरफ अदव हो दुसरी तरफ वे अदव हो तो आप किसे अपनाऐेंगे 
    ✏. जो लोग सुरू इकामत पै खडा होते है उनसे गुजारिस है कि वो सबूत दे अगर सबूत न मिले तो उनसे मेरी गुजारिस है कि उन्हे हइय्या अल्ल सला पै खडा होना चाहिऐ 
    ✏ हम मुस्लमानो को चाहिये कि हइय्या अल्ल सला पै खडे होकर नवी और सहाबा की सुन्नतों पर चले
    या अल्लाह हमे हर सुन्नत पर चलने की तौफिक दे (आमीन)
    ============
    54 सूरए क़मर -तीसरा रूकू 
    और बेशक फ़िरऔन वालों के पास रसूल आएं (1){41}
    (1) हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम, तो फ़िरऔनी उनपर ईमान न लाए. उन्होंने हमारी सब निशानियाँ झुटलाई (2)(2) जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दी गई थीं. तो हमने उनपर (3)(3) अज़ाब के साथ. गिरफ़्त की जो एक इज़्ज़त वाले और अज़ीम क़ुदरत वाले की शान थी {42} क्या (4)(4) ऐ मक्के वालों. तुम्हारे काफ़िर उनसे बेहतर हैं (5)(5) यानी उन क़ौमों से ज़्यादा क़वी और मज़बूत हैं या कुफ़्र और दुश्मनी में कुछ उनसे कमे हैं. या किताबों में तुम्हारी छुट्टी लिखी हुई है (6){43}(6) कि तुम्हारे कुफ़्र की पकड़ न होगी और तुम अल्लाह के अज़ाब से अम्न में रहोगे. या ये कहते हैं (7)(7) मक्के के काफ़िर. कि हम सब मिलकर बदला ले लेंगे (8){44}(8) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से. अब भगाई जाती है यह जमाअत (9)
    (9) मक्के के काफ़िरों की. और पीठें फेर देंगे (10){45}
    (10) और इस तरह भागेंगे कि एक भी क़ायम न रहेगा. बद्र के रोज़ जब अबू जहल ने कहा कि हमसब मिलकर बदला ले लेंगे, तब यह आयत उतरी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ज़िरह पहन कर यह आयत तिलावत फ़रमाई. फिर ऐसा ही हुआ कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की फ़त्ह हुई और काफ़िर परास्त हुए. बल्कि उनका वादा क़यामत पर है (11)(11) यानी उस अज़ाब के बाद उन्हें क़यामत के दिन के अज़ाब का वादा है. और क़यामत निहायत (अत्यन्त) कड़वी और सख़्त कड़वी (12){46}(12) दुनिया के अज़ाब से उसका अज़ाब बहुत ज़्यादा सख़्त है. बेशक मुजरिम गुमराह और दीवाने हैं (13){47}
    (13) न समझते है न राह पाते हैं. (तफ़सीरे कबीर)
    जिस दिन आग में अपने मुंहों पर घसीटे जाएंगे, और फ़रमाया जाएगा चखों दोज़ख़ की आंच {48} बेशक हम ने हर चीज़ एक अन्दाज़े से पैदा फ़रमाई (14){49}
    (14) अल्लाह की हिकमत के अनुसार. यह आयत दहे
    दहेरयों के रद में उतरी जो अल्लाह की क़ुदरत के इन्कारी हैं और दुनिया में जो कुछ होता है उसे सितारों वगै़रह की तरफ़ मन्सूब करते हैं. हदीसों में उन्हें इस उम्मत का मजूस कहा गया है और उनके पास उठने बैठने और उनके साथ बात चीत करने और वो बीमार हो जाएं तो उनकी पूछ ताछ करने और मर जाएं तो उनके जनाज़े में शरीक होने से मना फ़रमाया गया है और उन्हें दज्जाल का साथी फ़रमाया गया. वो बदतरीन लोग हैं. और हमारा काम तो एक बात की बात है जैसे पलक मारना (15) {50}(15) जिस चीज़ के पैदा करने का इरादा हो वह हुक्म के साथ ही हो जाती है. और बेशक हमने तुम्हारी वज़अ के (16)(16) काफ़िर पहली उम्मतों के. हलाक कर दिये तो है कोई ध्यान करने वाला (17){51}(17) जो इब्रत हासिल करें और नसीहत माने. और उन्होंने जो कुछ किया सब किताबों में है (18){52}(18) यानी बन्दों के सारे कर्म आमाल के निगहबान फ़रिश्तो के लेखों में है.
    और हर छोटी बड़ी चीज़ लिखी हुई है (19){53}(19) लौहे मेहफ़ूज़ में. बेशक परहेज़गार बाग़ों और नहर में हैं {54} सच की मजलिस में अज़ीम क़ुदरत वाले बादशाह के हुज़ूर (20){55}(20) यानी उसकी बारगाह के प्यारे चहीते हैं.

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