एक वक़्त था जब ज़्यादातर औरतें डॉक्टरों से ज़िद करती थी कि उनकी नॉर्मल डिलीवरी ही करें. डॉक्टर भी यही चाहते थे. आख़िर नॉर्मल डिलीवरी हर लिहाज़ से ज़्यादा सेफ़ मानी गई है. पर साल-दर-साल, सी-सेक्शन की संख्या बढती जा रही है. सी-सेक्शन मतलब ऑपरेशन से बच्चा निकालना. कुछ समय पहले ‘द लांसेट मेडिकल’ नाम के एक जर्नल में छपी ख़बर के मुताबिक कम से कम 15 देशों में 40 प्रतिशत बच्चे सी-सेक्शन से पैदा होते हैं. सी-सेक्शन वैसे तो उस हालात में किए जाते थे जब बच्चे या मां की जान को ख़तरा हो. या फिर मां उतना दर्द बर्दाश्त करने की हालत में न हो. पर सी-सेक्शन के अपने साइड इफेक्ट्स होते हैं साथ ही आगे होने वाली डिलीवरी में दिक्कत आती हैं.
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद ने एक स्टडी निकाली है. एक साल में लगभग 70 लाख डिलीवरी होती हैं. जिनमें 9 लाख ऑपरेशन से की जाती हैं. ये वो नौ लाख हैं जिनको ऑपरेशन से करने का कोई तुक नहीं है. फिर भी की जाती हैं. मकसद सिर्फ़ एक होता है-पैसा कमाना!
ऐसे ज़बरदस्ती के सी-सेक्शन न सिर्फ़ औरत के परिवार वालों को बहुत महगें पड़ते हैं बल्कि इनकी वजह से काफ़ी हेल्थ इश्यूज़ भी होते है. जैसे मां बच्चा पैदा करने के बाद तुरंत स्तनपान नहीं कर पाती. यही नहीं. पैदाइश के समय बच्चे का वज़न भी काफ़ी कम होता है. साथ ही बच्चे को सांस लेने में भी दिक्कत होती है.
अब बात करते हैं प्राइवेट क्लिनिक्स और अस्पतालों की. यहां 40.9 प्रतिशत डिलीवरी सी-सेक्शन से होती हैं.
जिस स्टडी की हम बात कर रहे हैं, उसमें लिखा है कि जो भी औरत प्राइवेट क्लिनिक जाती है उनमें से 13.5 से लेकर 14 प्रतिशत औरतों की डिलीवरी सी-सेक्शन से होती है. वो भी तब जब पहले से उसके बारे में मां या उसके परिवार वालों को आगाह नहीं किया जाता. यही अगर कोई औरत किसी सरकारी अस्पताल जाती है तो सी-सेक्शन से की गई डिलीवरी की संख्या हो जाती है 11.9 प्रतिशत.
ये डाटा निकाला है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने. 2015 से 2016 के बीच में.
अक्सर होता क्या है कि प्राइवेट अस्पताल पेशेंट का ज़्यादा ध्यान रखते हैं. क्योंकि पैसे ज्यादा लेते हैं. ज़्यादा अच्छा इलाज करते हैं. पर कई बार ये इलाज फ़िजूल का होता है. अब इतनी महंगी दवाइयां देंगे तो भरपाई भी तो करेंगें. और वो करते हैं ये ऑपरेशन करके क्योंकि ऑपरेशन की रकम नेचुरल डिलीवरी से ज़्यादा होती है.
एक प्राइवेट हॉस्पिटल में नेचुरल डिलीवरी की कीमत कम से कम 10,814 रुपए होती है. यही सी-सेक्शन की कीमत होती है 23,978. अब आप ख़ुद फ़र्क देख लीजिए.
अब इस दिक्कत का एक ही इलाज है. वो ये कि सरकारी अस्पताल अपने इंफ़्रास्ट्रकचर पर काम करें. यानी मां और बच्चे को सही और समय पर इलाज मुहैय्या करवाए. जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक लोग प्राइवेट अस्पतालों की तरफ़ भागते रहेंगें. और वो सटीक इलाज देने के नाम पर बड़े-बड़े बिल फाड़ते रहेंगें. क्या समझे?
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद ने एक स्टडी निकाली है. एक साल में लगभग 70 लाख डिलीवरी होती हैं. जिनमें 9 लाख ऑपरेशन से की जाती हैं. ये वो नौ लाख हैं जिनको ऑपरेशन से करने का कोई तुक नहीं है. फिर भी की जाती हैं. मकसद सिर्फ़ एक होता है-पैसा कमाना!
ऐसे ज़बरदस्ती के सी-सेक्शन न सिर्फ़ औरत के परिवार वालों को बहुत महगें पड़ते हैं बल्कि इनकी वजह से काफ़ी हेल्थ इश्यूज़ भी होते है. जैसे मां बच्चा पैदा करने के बाद तुरंत स्तनपान नहीं कर पाती. यही नहीं. पैदाइश के समय बच्चे का वज़न भी काफ़ी कम होता है. साथ ही बच्चे को सांस लेने में भी दिक्कत होती है.
अब बात करते हैं प्राइवेट क्लिनिक्स और अस्पतालों की. यहां 40.9 प्रतिशत डिलीवरी सी-सेक्शन से होती हैं.
जिस स्टडी की हम बात कर रहे हैं, उसमें लिखा है कि जो भी औरत प्राइवेट क्लिनिक जाती है उनमें से 13.5 से लेकर 14 प्रतिशत औरतों की डिलीवरी सी-सेक्शन से होती है. वो भी तब जब पहले से उसके बारे में मां या उसके परिवार वालों को आगाह नहीं किया जाता. यही अगर कोई औरत किसी सरकारी अस्पताल जाती है तो सी-सेक्शन से की गई डिलीवरी की संख्या हो जाती है 11.9 प्रतिशत.
ये डाटा निकाला है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने. 2015 से 2016 के बीच में.
अक्सर होता क्या है कि प्राइवेट अस्पताल पेशेंट का ज़्यादा ध्यान रखते हैं. क्योंकि पैसे ज्यादा लेते हैं. ज़्यादा अच्छा इलाज करते हैं. पर कई बार ये इलाज फ़िजूल का होता है. अब इतनी महंगी दवाइयां देंगे तो भरपाई भी तो करेंगें. और वो करते हैं ये ऑपरेशन करके क्योंकि ऑपरेशन की रकम नेचुरल डिलीवरी से ज़्यादा होती है.
एक प्राइवेट हॉस्पिटल में नेचुरल डिलीवरी की कीमत कम से कम 10,814 रुपए होती है. यही सी-सेक्शन की कीमत होती है 23,978. अब आप ख़ुद फ़र्क देख लीजिए.
अब इस दिक्कत का एक ही इलाज है. वो ये कि सरकारी अस्पताल अपने इंफ़्रास्ट्रकचर पर काम करें. यानी मां और बच्चे को सही और समय पर इलाज मुहैय्या करवाए. जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक लोग प्राइवेट अस्पतालों की तरफ़ भागते रहेंगें. और वो सटीक इलाज देने के नाम पर बड़े-बड़े बिल फाड़ते रहेंगें. क्या समझे?