अस्सलाम वालेकुम मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आज हम आपको बताएंगे दुआ कब मांगे यानी कि ऐसे वक्त जो कि अल्लाह दुआओं को कुबूल करता है. दोस्तों दुआ कोई अल्फाज नहीं है यह एक कैफियत है जिसे सिर्फ महसूस किया जाता है आप अरबी में ,उर्दू में ,हिंदी में, इंग्लिश में या फ़ारसी में दुआ मांगे लेकिन पूरी तरीके से डूब के मांगे.
दुआ किसी अल्फाज की मोहताज नहीं है। कुर्बान जाओ उस खुदा पर जिसको पता था कि उसकी सारे बंदे नेक नहीं होंगे कुछ गुनाहगार भी होंगी इसीलिए अल्लाह ने दुआओं को कुबूल करने के लिए कोई लंबी चौड़ी शर्त नहीं लगाई सिर्फ एक छोटी सी शर्त लगाई है अल्लाह कहता है कि जब भी दुआ मांगो रो कर और तड़पकर दुआ मांगो.
दुनिया में बहुत सारे लोग हैं जो रोजा नहीं रखते हैं बहुत सारे हैं जो नमाज नहीं पढ़ते बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो हलाल कमाई नहीं करते हैं तो अगर ऐसा होता कि अल्लाह सिर्फ तक़वे वाले लोगों की दुआ सुनता तब तो बाकी गुनाहगारों की कोई दुआ ही कुबूल नहीं होती। इसलिए अल्लाह ने फरमाया है कि मेरे सभी बंदे सच्चे और नेक नहीं हो सकते हैं तो वह मेरे सामने रो कर दुआ मांगे जैसे कोई बच्चा रो कर अपनी मां से कुछ मांगता हो.
बच्चा भी अगर रोता है तो मां पहले इंकार करती है लेकिन अगर बच्चा लगातार रोता रहता है तो मां उसकी ख्वाहिश जरूर पूरी करती है ताकि बच्चा चुप हो जाए वैसे ही अगर तुम लगातार रो-रोकर अल्लाह से दुआ करो तो वह तुम्हारी दुआ जरूर कबूल करेगा. बहुत से लोग किताबों में देखकर दुआ पढ़ते हैं जब की दुआ पढ़ने का नाम नहीं है. दिल से निकलने वाली फरियाद को दुआ कहते हैं और अल्लाह ने कहा है तो मुझसे कभी याद करो मैं तुम्हारी दुआ कुबूल करूंगा.
अल्लाह ने कहा है कि मैं पुकारने वाले की पुकार को सुनता हूं चाहे वह मुसलमान हो, मोमिन हो या काफ़िर हो बस उसके दिल की फरियाद निकलनी चाहिए. एक बार हजरत उमर उमरा करने जा रहे थे उस वक्त हमारे नबी ने उनसे कहा कि उमर दुआ में हमें याद रखना. इस तरह दुआ के लिए किसी से कहना कोई गलत बात नहीं है.
कई बार लोग दूसरों से कहते हैं कि मेरे लिए खास दुआ करना जबकि खास दुआ वह होती है जो इंसान खुद अपने के लिए रो के और तड़प कर करता है आमतौर पर लोग कहते हैं अल्लाह मेरी दुआ नहीं सुनता है जबकि अल्लाह सब की हर दुआ सुनता है.
बस कुबूल करने की शक्ल अलग होती है कभी अल्लाह हमको वही दे देता है जो हम मांगते हैं लेकिन कभी-कभी वह हमें हमारी दुआ के मुताबिक नहीं देता है क्योंकि वह हमारे लिए मुनासिब नहीं होता है उस वक्त अल्लाह हमें वह देता है जो हमारे लिए मुनासिब होता है कभी-कभी अल्लाह दुआ के बदले में हम पर आने वाली मुसीबतें डाल देता है.
दुआ किसी अल्फाज की मोहताज नहीं है। कुर्बान जाओ उस खुदा पर जिसको पता था कि उसकी सारे बंदे नेक नहीं होंगे कुछ गुनाहगार भी होंगी इसीलिए अल्लाह ने दुआओं को कुबूल करने के लिए कोई लंबी चौड़ी शर्त नहीं लगाई सिर्फ एक छोटी सी शर्त लगाई है अल्लाह कहता है कि जब भी दुआ मांगो रो कर और तड़पकर दुआ मांगो.
दुनिया में बहुत सारे लोग हैं जो रोजा नहीं रखते हैं बहुत सारे हैं जो नमाज नहीं पढ़ते बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो हलाल कमाई नहीं करते हैं तो अगर ऐसा होता कि अल्लाह सिर्फ तक़वे वाले लोगों की दुआ सुनता तब तो बाकी गुनाहगारों की कोई दुआ ही कुबूल नहीं होती। इसलिए अल्लाह ने फरमाया है कि मेरे सभी बंदे सच्चे और नेक नहीं हो सकते हैं तो वह मेरे सामने रो कर दुआ मांगे जैसे कोई बच्चा रो कर अपनी मां से कुछ मांगता हो.
बच्चा भी अगर रोता है तो मां पहले इंकार करती है लेकिन अगर बच्चा लगातार रोता रहता है तो मां उसकी ख्वाहिश जरूर पूरी करती है ताकि बच्चा चुप हो जाए वैसे ही अगर तुम लगातार रो-रोकर अल्लाह से दुआ करो तो वह तुम्हारी दुआ जरूर कबूल करेगा. बहुत से लोग किताबों में देखकर दुआ पढ़ते हैं जब की दुआ पढ़ने का नाम नहीं है. दिल से निकलने वाली फरियाद को दुआ कहते हैं और अल्लाह ने कहा है तो मुझसे कभी याद करो मैं तुम्हारी दुआ कुबूल करूंगा.
अल्लाह ने कहा है कि मैं पुकारने वाले की पुकार को सुनता हूं चाहे वह मुसलमान हो, मोमिन हो या काफ़िर हो बस उसके दिल की फरियाद निकलनी चाहिए. एक बार हजरत उमर उमरा करने जा रहे थे उस वक्त हमारे नबी ने उनसे कहा कि उमर दुआ में हमें याद रखना. इस तरह दुआ के लिए किसी से कहना कोई गलत बात नहीं है.
कई बार लोग दूसरों से कहते हैं कि मेरे लिए खास दुआ करना जबकि खास दुआ वह होती है जो इंसान खुद अपने के लिए रो के और तड़प कर करता है आमतौर पर लोग कहते हैं अल्लाह मेरी दुआ नहीं सुनता है जबकि अल्लाह सब की हर दुआ सुनता है.