रिवायत मे बयान किया गया है कि बच्चों को नमाज़ सिखाना माँ बाप की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। माता पिता को चाहिए कि जब बच्चा तीन साल का हो जाये तो इसको ला इलाहा इल्लल्लाह जैसे वाक्य याद कराएं। और फिर कुछ समय के बाद उसको अपने साथ नमाज़ मे खड़ा करें। इस तरह उसको धीरे धीरे नमाज़ के लिए तैयार करें। क़ुरआन मे है कि उलुल अज़्म (वह रसूल जो दूसरे रसूलों बड़े हैं और ख़ुदा ने उनको कोई ना कोई किताब दे कर लोगों के मार्गदर्शन के लिए भेजा है) रसूल अपने बच्चों की नमाज़ के बारे मे बहुत ज़्यादा फ़िक्रमंद थे। क़ुरआने करीम के सूरए ताहा की 132वी आयत मे अल्लाह ने पैगम्बरे इस्लाम (स.) से फ़रमाया कि अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म दो।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए मरियम की 55वी आयत मे जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तारीफ़ करते हुए फरमाया कि वह अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म देते थे।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए लुक़मान की 17वी आयत मे यह आदेश मिलता है कि जनाबे लुक़मान अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को वसीयत की कि नमाज़ पढ़ो और लोगो को अच्छाईयों की तरफ़ बुलाओ।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए इब्राहीम की 40वी आयत मे इरशाद होता है कि जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम अल्लाह से दुआ करते थे कि पालने वाले मुझे और मेरी औलाद को नमाज़ क़ाइम करने वाला बना दे।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए मरियम की 55वी आयत मे जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तारीफ़ करते हुए फरमाया कि वह अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म देते थे।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए लुक़मान की 17वी आयत मे यह आदेश मिलता है कि जनाबे लुक़मान अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को वसीयत की कि नमाज़ पढ़ो और लोगो को अच्छाईयों की तरफ़ बुलाओ।
पवित्र क़ुरआन के सूरा ए इब्राहीम की 40वी आयत मे इरशाद होता है कि जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम अल्लाह से दुआ करते थे कि पालने वाले मुझे और मेरी औलाद को नमाज़ क़ाइम करने वाला बना दे।