मक्का शहर का माहौल तब सामान्य सा था, इस शहर में रहनेवाला एक आदमी कुछ पैसे कमाने की गरज़ से एक बाग़ में गया| वहां उसने एक बड़े से पेड़ से खजूरें इकठ्ठी कीं और बेचने के लिए बाज़ार की और चल दिया|इस आदमी ने जो खजूरें चुनी थी वो ऐसी खुजूर थी जो सिर्फ इस शहर के इसी बाग़ में लगी थी, कहीं दूसरी जगह नहीं| लेकिन वहां के लोगों को इस खुजूर से किसी तरह कि कोई रग़बत ना थी|
इसलिए इस बाग़ कि उस खुजूर में वो बात और नरमी नहीं थी, ना ही इसमें वो ज़ायक़ा था और इसका रंग भी बहुत गहरा था और दाना भी बहुत छोटा था| वो ग़रीब आदमी जिसकी नाक कुछ मोटी और आंखें छोटी, स्याह रंगत वाला इंसान था| जब वो चलता तो उसकी टांगे अटक जातीं, जब बोलता तो ज़बान में लड़खड़ा जाती
ये आदमी एक तरह से ग़ुरबत से ग़ुरबत की नस्ली ग़ुलाम रहा था, वो तमाम खुजूरें झोली में डाले शहर में उनको फरोख्त करने की कोशिश मव लगा हुआ था| इस बाग़ का की ये आखरी खजूरें थी जो इस आदमी की झोली में थीं|
सारे शहर में ऐसा कोई नहीं मिला जो इन खुजूरों का तलबगार होता| वाल्की लोगों में से एक ने ये तक कहा कि ऐ बिलाल ये खुजूर तो तेरे जैसी ही काली हैं| इतना सुनते ही उस शख्श की आँखों से ज़ारोजार आंसू बहने लगे| दिल बैठा जा रहा था कि मुझ ग़रीब के लिए क्या इस शहर में कोई जगह नहीं?
बीलाल हब्शी अपनी खुजूर समेटकर बैठे रहे, ऐसे में वहां एक हस्ती का गुज़र हुआ जो दिलों का हाल जानने वाले और टूटे दिलों का सहारा थे| जिसने दुनिय्भर के मिस्कीनों को इज़्ज़त बख्शी, वो जिसका नाम दुनिय्भर के ग़मज़दा दिलों की तस्कीन है, वो जो ग़रीबों का मसीहा है, वो है जो बे जुबां जानवरों के लिए रहमत है|
जिसकी सब्र और रहमतों की दुनिया में मिसाल है, वो जिसको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस तमाम आलम के लिए रहमत बनाकर भेजा, हां वहीं मुहम्मद मुस्तफ़ा, मुहम्मद-ए-अरबी अलैहिस्सलाम, आपने बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु से सब माज़रा पूछा तो, आप लोगों से यूँ मुख़ातिब हु और फ़रमाया,“ऐ लोगों ये खुजूर “अज्वा” है ये दिल की मर्ज़ वालों के लिए शिफा है|
ये फालिज़ के लिए शिफा है, ये सतर-ए-इमराज़ के लिए शिफा है, और लोगों ये खुजूरों की सरदार है, और फिर फ़रमाया जो इसे खा ले उसे जादू से अमान है।फिर क्या था? मंज़र बदल गया वो बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु जिसके पास चंद लम्हे पहले तक झाड़ झंकार था, अब रसूल-ए-खुदा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे ग़नी कर दिया,
फिर रावी लिखते हैं कि,” लोग बिलाल की मिन्नतें करते और बिलाल किसी मचले हुए बच्चे की मानिंद आगे आगे भागते, तारीख़ गवाह है, के वो जिसे कभी दुनिया झाड़ झंकार समझ रही थी, बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु की झोली में आकर और मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान-ए-मुबारक का सदक़ा है कि आज भी “अज्वा” तमाम खजूरों की सरदार है|
इसलिए इस बाग़ कि उस खुजूर में वो बात और नरमी नहीं थी, ना ही इसमें वो ज़ायक़ा था और इसका रंग भी बहुत गहरा था और दाना भी बहुत छोटा था| वो ग़रीब आदमी जिसकी नाक कुछ मोटी और आंखें छोटी, स्याह रंगत वाला इंसान था| जब वो चलता तो उसकी टांगे अटक जातीं, जब बोलता तो ज़बान में लड़खड़ा जाती
ये आदमी एक तरह से ग़ुरबत से ग़ुरबत की नस्ली ग़ुलाम रहा था, वो तमाम खुजूरें झोली में डाले शहर में उनको फरोख्त करने की कोशिश मव लगा हुआ था| इस बाग़ का की ये आखरी खजूरें थी जो इस आदमी की झोली में थीं|
सारे शहर में ऐसा कोई नहीं मिला जो इन खुजूरों का तलबगार होता| वाल्की लोगों में से एक ने ये तक कहा कि ऐ बिलाल ये खुजूर तो तेरे जैसी ही काली हैं| इतना सुनते ही उस शख्श की आँखों से ज़ारोजार आंसू बहने लगे| दिल बैठा जा रहा था कि मुझ ग़रीब के लिए क्या इस शहर में कोई जगह नहीं?
बीलाल हब्शी अपनी खुजूर समेटकर बैठे रहे, ऐसे में वहां एक हस्ती का गुज़र हुआ जो दिलों का हाल जानने वाले और टूटे दिलों का सहारा थे| जिसने दुनिय्भर के मिस्कीनों को इज़्ज़त बख्शी, वो जिसका नाम दुनिय्भर के ग़मज़दा दिलों की तस्कीन है, वो जो ग़रीबों का मसीहा है, वो है जो बे जुबां जानवरों के लिए रहमत है|
जिसकी सब्र और रहमतों की दुनिया में मिसाल है, वो जिसको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस तमाम आलम के लिए रहमत बनाकर भेजा, हां वहीं मुहम्मद मुस्तफ़ा, मुहम्मद-ए-अरबी अलैहिस्सलाम, आपने बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु से सब माज़रा पूछा तो, आप लोगों से यूँ मुख़ातिब हु और फ़रमाया,“ऐ लोगों ये खुजूर “अज्वा” है ये दिल की मर्ज़ वालों के लिए शिफा है|
ये फालिज़ के लिए शिफा है, ये सतर-ए-इमराज़ के लिए शिफा है, और लोगों ये खुजूरों की सरदार है, और फिर फ़रमाया जो इसे खा ले उसे जादू से अमान है।फिर क्या था? मंज़र बदल गया वो बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु जिसके पास चंद लम्हे पहले तक झाड़ झंकार था, अब रसूल-ए-खुदा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे ग़नी कर दिया,
फिर रावी लिखते हैं कि,” लोग बिलाल की मिन्नतें करते और बिलाल किसी मचले हुए बच्चे की मानिंद आगे आगे भागते, तारीख़ गवाह है, के वो जिसे कभी दुनिया झाड़ झंकार समझ रही थी, बिलाल रज़िअल्लाह अन्हु की झोली में आकर और मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान-ए-मुबारक का सदक़ा है कि आज भी “अज्वा” तमाम खजूरों की सरदार है|