पढ़िए: हज़रत सलमान फ़ारसी रज़िअल्लाह अन्हु के, इस्लाम कुबूल करने का बेहतरीन वाक़्या
एक हिजरी के वाक़्यात में हज़रत सलमान फ़ारसी रज़िअल्लाह तआला अन्हु के इस्लाम लाने का वाक़्या भी बहुत अहम है।
रौज़-ए-मुबारक हज़रत सलमान फ़ारसी रज़िअल्लाह अन्हु
ये फ़ारस के रहने वाले थे इनके अबा व अज्दाद बल्कि इनके मुल्क की पूरी आबादी मजूसी (आतिश परस्त) की थी।
ये अपने आबाई दीन से बेज़ार होकर दीन-ए-हक़ की तलाश में अपने वतन से निकले, मगर डाकुओं ने इनको गिरफ़्तार करके अपना गुलाम बना लिया फिर इन को बेच डाला।
चुनांचे ये कई बार बिकते रहे और मुख्तलिफ लोगों की गुलामी करते रहे, इसी हालत में ये मदीना पहुंचे कुछ दिनों तक ईसाई बन कर रहे और यहूदियों से भी मेल जोल रखते रहे, इस तरह इनको तौरेत व इंजील की काफी मालूमात हासिल हो चुकी थी।
अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाजिर हुए तो पहले दिन ताज़ा खजूरों का एक ताबाक़ ख़िदमत-ए-अक़्दस में ये कहकर पेश किया की ये “सदक़ा” है, हुजूर मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि इसको हमारे सामने से उठाकर फ़ोक़रा और मसाकीन में तक़सीम कर दो क्योंकि मैं सदक़ा नहीं खाता, फिर दूसरे दिन खजूरों का ख्वान लेकर पहुंचे और ये कहकर अल्लाह के रसूल की बारगाह में पेश किया कि ये “हदिया” है।
हुजूर मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को हाथ बढ़ाने का इशारा फरमाया और खुद भी खा लिया, इसी दरमियान में हज़रत सलमान फारसी रज़िअल्लाह तआला अन्हु हुज़ूर मुस्तफ़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोनों शानों के दरमियान जो नजर डाली तो, मोहर-ए-नबूवत को देख लिया चूँकि ये तौरेत और इंजील में नबी-ए-आखिरुज़्ज़मा की निशानियाँ पढ़ चुके थे इसलिए इस्लाम क़ुबूल कर लिया।
एक हिजरी के वाक़्यात में हज़रत सलमान फ़ारसी रज़िअल्लाह तआला अन्हु के इस्लाम लाने का वाक़्या भी बहुत अहम है।
रौज़-ए-मुबारक हज़रत सलमान फ़ारसी रज़िअल्लाह अन्हु
ये फ़ारस के रहने वाले थे इनके अबा व अज्दाद बल्कि इनके मुल्क की पूरी आबादी मजूसी (आतिश परस्त) की थी।
ये अपने आबाई दीन से बेज़ार होकर दीन-ए-हक़ की तलाश में अपने वतन से निकले, मगर डाकुओं ने इनको गिरफ़्तार करके अपना गुलाम बना लिया फिर इन को बेच डाला।
चुनांचे ये कई बार बिकते रहे और मुख्तलिफ लोगों की गुलामी करते रहे, इसी हालत में ये मदीना पहुंचे कुछ दिनों तक ईसाई बन कर रहे और यहूदियों से भी मेल जोल रखते रहे, इस तरह इनको तौरेत व इंजील की काफी मालूमात हासिल हो चुकी थी।
अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाजिर हुए तो पहले दिन ताज़ा खजूरों का एक ताबाक़ ख़िदमत-ए-अक़्दस में ये कहकर पेश किया की ये “सदक़ा” है, हुजूर मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि इसको हमारे सामने से उठाकर फ़ोक़रा और मसाकीन में तक़सीम कर दो क्योंकि मैं सदक़ा नहीं खाता, फिर दूसरे दिन खजूरों का ख्वान लेकर पहुंचे और ये कहकर अल्लाह के रसूल की बारगाह में पेश किया कि ये “हदिया” है।
हुजूर मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को हाथ बढ़ाने का इशारा फरमाया और खुद भी खा लिया, इसी दरमियान में हज़रत सलमान फारसी रज़िअल्लाह तआला अन्हु हुज़ूर मुस्तफ़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोनों शानों के दरमियान जो नजर डाली तो, मोहर-ए-नबूवत को देख लिया चूँकि ये तौरेत और इंजील में नबी-ए-आखिरुज़्ज़मा की निशानियाँ पढ़ चुके थे इसलिए इस्लाम क़ुबूल कर लिया।