मलेशिया के प्रधानमंत्री महातीर मुहम्मद ने अब अतिग्रहकारी शासन इस्राईल को ज़ोरदार तमाचा रसीद कर दिया है। शुक्रवार को महातीर मुहम्मद की सरकार ने इस्राईली खिलाड़ियों को वीज़ा देने से साफ़ इंकार कर दिया।
इस्राईली तैराक मलेशिया में होने जा रही खेल प्रतियोगिता में तैराकी के मुक़ाबलों में भाग लेने जाना चाहते थे। महातीर मुहम्मद का स्टैंड बिल्कुल साफ़ था वह न तो इस्राईल दबा के सामने झुके और न ही अंतर्राष्ट्रीय दबाव से प्रभावित हुए।
महातीर मुहम्मद ने दो टूक शब्दों में कहा कि हम अपने देश में इस्राईलियों का प्रवेश सहन नहीं कर सकते यदि अंतर्राष्ट्रीय फ़ेड्रेशन हम से मेज़बानी का अधिकार वापस लेना चाहती है तो वह शौक़ से एसा कर ले।
यह प्रतिष्ठित और सिद्धातंवादी स्टैंड मलेशिया के उस महान नेता का है जिसने देश को दुनिया की मज़बूत आर्थिक शक्ति बना दिया। यह स्टैंड एसे समय में सामने आया है जब अरब सरकारें इस्राईली अधिकारियों और स्पोर्ट्स टीमों के लिए अपने दरवाज़ें और खिड़कियां सब खोल रही हैं, अरब देशों में इस्राईल का राष्ट्रगान बजा रही हैं और उनके आसमानों में इस्राईल ध्वज लहराया जाता है।
महातीर मुहम्मद ने मलेशिया को बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंचाया क्योंकि उनका दामन साफ़ है और उन्हें मानवीय न्याय और मूल्यों से लगाव है। वह इस्लामी मूल्यों और सिद्धांतों को महत्व देता हैं उन पर कभी भी सौदा नहीं करते।
महातीर मुहम्मद ने तब सत्ता छोड़ी जब उनकी लोकप्रियता शानदार थी और पुनः सत्ता में तब लौटै जब देश में भ्रष्टाचार फैल गया और उनका स्थान लेने वाले मलेशिया के प्रधानमंत्री कुछ अरब सरकारों के भ्रष्टाचारी अधिकरियों का हथकंडा बन गए थे। महातीर मुहम्मद जनता की इच्छा और समर्थन से पुनः सत्ता में लौटे, वह चुनाव जीतकर सत्ता में लौटे कोई विद्रोह और बग़ावत नहीं की।
अरब सरकारें जिनका स्थान दुनिया के खेलों की रैंकिंग में सबसे नीचे है वह दिखाना चाहती हैं कि खेल फ़ेडरेशनों के नियमों का उन्हें बहुत सम्मान है और वह खेल को राजनीति से अलग रखना चाहती हैं, तथा विश्व समुदाय का हिस्सा बन कर रहना चाहती हैं। हालांकि यह सब कुछ अरब व इस्लामी सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करने के लिए उनकी कोरी बहानेबाज़ी है।
मलेशिया और उसके नेता के इस गौरवपूर्ण स्टैंड के महत्व को समझने के लिए हमारे मन में एक घटना आ रही है जिसका उल्लेख ज़रूरी है। इसके बारे में हमें क्वालालमपुर में फ़िलिस्तीन के एक पूर्व राजदूत ने बताया।
पूर्व राजदूत का कहना था कि एक ग़रीब फ़िलिस्तीनी पर्यटक ने क्वालालमपुर की यात्रा की और प्रधानमंत्री महातीर मुहम्मद से मुलाक़ात करके उन्हें एक प्राचीन ढाल उपहार स्वरूप देनी चाही। पर्यटक को इसके बदले आर्थिक सहायता की उम्मीद थी।
महातीर मुहम्मद को उनके एक सलाहकार ने जब इस बारे में बताया कि उन्होंने अपने जेब ख़र्च से कुछ पैसे ग़रीब फ़िलिस्तीनी को दिए क्योंकि देश के बजट में कोई एसा प्रावधान नहीं था जिसके तहत वह वित्तीय उपहार दे सकते।
महातीर मुहम्मद एक अंतर्राष्ट्रीय एकेडमिक इंस्टीट्यूशन का स्थान रखते हैं जो पारदर्शिता, देश प्रेम, लोकतंत्र और महान इस्लामिक सभ्यता का पाठ देते हैं। खेद की बात है कि यदि हमारे अरब नेताओं और अधिकारियों में से कोई भी इस इंस्टीट्यूशन का हिस्सा बनना चाहे तो पहले ही क्षण में उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
साभार- ‘parstoday.com’
इस्राईली तैराक मलेशिया में होने जा रही खेल प्रतियोगिता में तैराकी के मुक़ाबलों में भाग लेने जाना चाहते थे। महातीर मुहम्मद का स्टैंड बिल्कुल साफ़ था वह न तो इस्राईल दबा के सामने झुके और न ही अंतर्राष्ट्रीय दबाव से प्रभावित हुए।
महातीर मुहम्मद ने दो टूक शब्दों में कहा कि हम अपने देश में इस्राईलियों का प्रवेश सहन नहीं कर सकते यदि अंतर्राष्ट्रीय फ़ेड्रेशन हम से मेज़बानी का अधिकार वापस लेना चाहती है तो वह शौक़ से एसा कर ले।
यह प्रतिष्ठित और सिद्धातंवादी स्टैंड मलेशिया के उस महान नेता का है जिसने देश को दुनिया की मज़बूत आर्थिक शक्ति बना दिया। यह स्टैंड एसे समय में सामने आया है जब अरब सरकारें इस्राईली अधिकारियों और स्पोर्ट्स टीमों के लिए अपने दरवाज़ें और खिड़कियां सब खोल रही हैं, अरब देशों में इस्राईल का राष्ट्रगान बजा रही हैं और उनके आसमानों में इस्राईल ध्वज लहराया जाता है।
महातीर मुहम्मद ने मलेशिया को बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंचाया क्योंकि उनका दामन साफ़ है और उन्हें मानवीय न्याय और मूल्यों से लगाव है। वह इस्लामी मूल्यों और सिद्धांतों को महत्व देता हैं उन पर कभी भी सौदा नहीं करते।
महातीर मुहम्मद ने तब सत्ता छोड़ी जब उनकी लोकप्रियता शानदार थी और पुनः सत्ता में तब लौटै जब देश में भ्रष्टाचार फैल गया और उनका स्थान लेने वाले मलेशिया के प्रधानमंत्री कुछ अरब सरकारों के भ्रष्टाचारी अधिकरियों का हथकंडा बन गए थे। महातीर मुहम्मद जनता की इच्छा और समर्थन से पुनः सत्ता में लौटे, वह चुनाव जीतकर सत्ता में लौटे कोई विद्रोह और बग़ावत नहीं की।
अरब सरकारें जिनका स्थान दुनिया के खेलों की रैंकिंग में सबसे नीचे है वह दिखाना चाहती हैं कि खेल फ़ेडरेशनों के नियमों का उन्हें बहुत सम्मान है और वह खेल को राजनीति से अलग रखना चाहती हैं, तथा विश्व समुदाय का हिस्सा बन कर रहना चाहती हैं। हालांकि यह सब कुछ अरब व इस्लामी सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करने के लिए उनकी कोरी बहानेबाज़ी है।
मलेशिया और उसके नेता के इस गौरवपूर्ण स्टैंड के महत्व को समझने के लिए हमारे मन में एक घटना आ रही है जिसका उल्लेख ज़रूरी है। इसके बारे में हमें क्वालालमपुर में फ़िलिस्तीन के एक पूर्व राजदूत ने बताया।
पूर्व राजदूत का कहना था कि एक ग़रीब फ़िलिस्तीनी पर्यटक ने क्वालालमपुर की यात्रा की और प्रधानमंत्री महातीर मुहम्मद से मुलाक़ात करके उन्हें एक प्राचीन ढाल उपहार स्वरूप देनी चाही। पर्यटक को इसके बदले आर्थिक सहायता की उम्मीद थी।
महातीर मुहम्मद को उनके एक सलाहकार ने जब इस बारे में बताया कि उन्होंने अपने जेब ख़र्च से कुछ पैसे ग़रीब फ़िलिस्तीनी को दिए क्योंकि देश के बजट में कोई एसा प्रावधान नहीं था जिसके तहत वह वित्तीय उपहार दे सकते।
महातीर मुहम्मद एक अंतर्राष्ट्रीय एकेडमिक इंस्टीट्यूशन का स्थान रखते हैं जो पारदर्शिता, देश प्रेम, लोकतंत्र और महान इस्लामिक सभ्यता का पाठ देते हैं। खेद की बात है कि यदि हमारे अरब नेताओं और अधिकारियों में से कोई भी इस इंस्टीट्यूशन का हिस्सा बनना चाहे तो पहले ही क्षण में उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
साभार- ‘parstoday.com’