इल्मा की कहानी में इतना दर्द है कि आपका कलेजा बाहर उछाल मारने की यक़ीनन कोशिश करेगा। इल्मा पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क और जकार्ता तक में पढ़ाई कर चुकी हैं। इनकी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक में हुई है। यूएन और क्लिंटन फॉउंडेशन के लिए भी काम किया है। इलमा अफ़रोज़ की वीडियो नीचे देखें.
बावजूद इसके इल्मा बिल्कुल साधारण कपड़े पहनती हैं और साधारण तरीक़े से ही रहती हैं। अद्भुत प्रतिभा की मालकिन इल्मा हिम्मत न हारने की मिसाल हैं। अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए बिल्कुल हिचकती नहीं हैं। अगर आपने पढ़ाई विदेश से की है तो आप चाहेंगे कि आप विदेश में ही रहकर नौकरी करें और अच्छा पैसा कमाएं. वहीं कई ऐसे लोग भी हैं, जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं.
हम बात कर रहे हैं इल्मा अफरोज की. जिन्होंने ऑल इंडिया सिविल सर्विसज में 217वीं रैंक हासिल की है. आज गरीबी से जूझकर वह IPS ऑफिसर बन गई हैं. जानें उनके संघर्ष की कहानी.. इल्मा यूपी के मुरादाबाद की रहने वाली हैं. वह किसान की बेटी हैं. पिता के निधन के बाद वह मां और भाई के साथ खेतों में हाथ बंटाने लगी, लेकिन इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी.
जहां लोगों को सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करने में कई साल लग जाते हैं वहीं गांव में पढ़ाई करके इल्मा ने पहली बार में ही 217वीं रैंक हासिल की है. इल्मा ने बताया कि जब मुझे मालूम चला कि यूपीएससी की परीक्षा में 217वीं रैंक हासिल की तो मेरे मुंह से निकला ‘जय हिंद’.
गांव में रहने वाली इल्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है. जिसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की. विदेश में पढ़ते हुए भी उनका सपना देश के लिए कुछ करने का था. एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने बताया ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के दौरान न्यूयॉर्क में रहती थी और वहां पर काफी चकाचौंध थी.
वहीं मैं ऐसी जगह से आई हूं जहां मैंने मोमबत्ती में भी पढ़ाई की है. मेरी मां चुल्हे पर रोटी बनाया करती थीं. उन्होंने कहा फ्लाइट के पैसे भी खेती-बाड़ी से ही आते हैं. तब मैंने सोचा विदेश में पढ़ाई करके अगर मैं विदेश के लोगों की सेवा करूं तो इससे मेरे गांव और परिवार वालों को कोई फायदा नहीं होगा जिन्होंने मुझ पर इतनी मेहनत की है.
जिसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की. उन्होंने बताया सफलता की राह आसान नहीं होती है. कई बार ऐसा हुआ है जब असफलता हाथ लगी. मैं वकील बनना चाहती थी लेकिन स्कॉलरशिप न मिलने पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं हो पाया.
वहीं जब मेहनत शुरू की तो राह खुलने लगी. वह बताती है कि सबसे ज्यादा शुक्रगुजार में अपने मुल्क का करती हूं, जिन्होंने मुझे स्कॉलरशिप दी. जिस वजह से मेरी पढ़ाई बाहर विदेश में हुई. आपको बता दें, यूपीएससी की परीक्षा में 217वीं रैंक लाने के दिन तक इल्मा खेतों में काम करती रहीं और अब भी खेती-बाड़ी से जुड़ी हुई हैं.
इल्मा अफ़रोज़ से इस संवाददाता की बातचीत के दौरान तेज़ आंधी आती है और एक लकड़ी का बोर्ड उड़कर उनके भाई अराफ़ात (24) के दाहिने हाथ पर गिर जाता है। इससे उनके हाथ से खून निकलने लगता है और हड्डी में गहरी चोट लगती है। अचानक से इल्मा बेहद तनाव में आ जाती हैं। वहां मौजूद लोग उन्हें समझाते हैं कि घबराइए मत, हड्डी नहीं टूटी है।
मगर वो बदहवास हैं और तेज़ आंधी-तूफ़ान के बीच ही मुरादाबाद (कुंदरकी में हड्डी का डॉक्टर नहीं है) जाने की ज़िद करती हैं। कमरे में दौड़कर जाती हैं। अपना पर्स लाती हैं। पैसे कम देखकर चाचा से मांगती हैं। तभी अराफ़ात अपनी उंगलियां चलाकर दिखाता है, जिससे यह पता चलता है कि हड्डी सलामत है।
इल्मा के घर के दो कमरों में कोई बेड नहीं है। चारपाई टूटी हुई है। कुर्सियां पड़ोस से मांगकर लाई गई है। इल्मा के पास बेहद सस्ता स्मार्ट फोन है, जिसकी स्क्रीन टूट चुकी है। अब से पहले भले ही कोई इन्हें पूछने वाला न हो, मगर जबसे उनके आईपीएस बनने की आहट हुई है, अचानक से रिश्तेदारों की आमद बढ़ गई है, इसलिए कुछ दिन से घर में खाना अच्छा बन रहा है।
बावजूद इसके इल्मा बिल्कुल साधारण कपड़े पहनती हैं और साधारण तरीक़े से ही रहती हैं। अद्भुत प्रतिभा की मालकिन इल्मा हिम्मत न हारने की मिसाल हैं। अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए बिल्कुल हिचकती नहीं हैं। अगर आपने पढ़ाई विदेश से की है तो आप चाहेंगे कि आप विदेश में ही रहकर नौकरी करें और अच्छा पैसा कमाएं. वहीं कई ऐसे लोग भी हैं, जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं.
हम बात कर रहे हैं इल्मा अफरोज की. जिन्होंने ऑल इंडिया सिविल सर्विसज में 217वीं रैंक हासिल की है. आज गरीबी से जूझकर वह IPS ऑफिसर बन गई हैं. जानें उनके संघर्ष की कहानी.. इल्मा यूपी के मुरादाबाद की रहने वाली हैं. वह किसान की बेटी हैं. पिता के निधन के बाद वह मां और भाई के साथ खेतों में हाथ बंटाने लगी, लेकिन इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी.
जहां लोगों को सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करने में कई साल लग जाते हैं वहीं गांव में पढ़ाई करके इल्मा ने पहली बार में ही 217वीं रैंक हासिल की है. इल्मा ने बताया कि जब मुझे मालूम चला कि यूपीएससी की परीक्षा में 217वीं रैंक हासिल की तो मेरे मुंह से निकला ‘जय हिंद’.
गांव में रहने वाली इल्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है. जिसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की. विदेश में पढ़ते हुए भी उनका सपना देश के लिए कुछ करने का था. एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने बताया ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के दौरान न्यूयॉर्क में रहती थी और वहां पर काफी चकाचौंध थी.
वहीं मैं ऐसी जगह से आई हूं जहां मैंने मोमबत्ती में भी पढ़ाई की है. मेरी मां चुल्हे पर रोटी बनाया करती थीं. उन्होंने कहा फ्लाइट के पैसे भी खेती-बाड़ी से ही आते हैं. तब मैंने सोचा विदेश में पढ़ाई करके अगर मैं विदेश के लोगों की सेवा करूं तो इससे मेरे गांव और परिवार वालों को कोई फायदा नहीं होगा जिन्होंने मुझ पर इतनी मेहनत की है.
जिसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की. उन्होंने बताया सफलता की राह आसान नहीं होती है. कई बार ऐसा हुआ है जब असफलता हाथ लगी. मैं वकील बनना चाहती थी लेकिन स्कॉलरशिप न मिलने पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं हो पाया.
वहीं जब मेहनत शुरू की तो राह खुलने लगी. वह बताती है कि सबसे ज्यादा शुक्रगुजार में अपने मुल्क का करती हूं, जिन्होंने मुझे स्कॉलरशिप दी. जिस वजह से मेरी पढ़ाई बाहर विदेश में हुई. आपको बता दें, यूपीएससी की परीक्षा में 217वीं रैंक लाने के दिन तक इल्मा खेतों में काम करती रहीं और अब भी खेती-बाड़ी से जुड़ी हुई हैं.
इल्मा अफ़रोज़ से इस संवाददाता की बातचीत के दौरान तेज़ आंधी आती है और एक लकड़ी का बोर्ड उड़कर उनके भाई अराफ़ात (24) के दाहिने हाथ पर गिर जाता है। इससे उनके हाथ से खून निकलने लगता है और हड्डी में गहरी चोट लगती है। अचानक से इल्मा बेहद तनाव में आ जाती हैं। वहां मौजूद लोग उन्हें समझाते हैं कि घबराइए मत, हड्डी नहीं टूटी है।
मगर वो बदहवास हैं और तेज़ आंधी-तूफ़ान के बीच ही मुरादाबाद (कुंदरकी में हड्डी का डॉक्टर नहीं है) जाने की ज़िद करती हैं। कमरे में दौड़कर जाती हैं। अपना पर्स लाती हैं। पैसे कम देखकर चाचा से मांगती हैं। तभी अराफ़ात अपनी उंगलियां चलाकर दिखाता है, जिससे यह पता चलता है कि हड्डी सलामत है।
इल्मा के घर के दो कमरों में कोई बेड नहीं है। चारपाई टूटी हुई है। कुर्सियां पड़ोस से मांगकर लाई गई है। इल्मा के पास बेहद सस्ता स्मार्ट फोन है, जिसकी स्क्रीन टूट चुकी है। अब से पहले भले ही कोई इन्हें पूछने वाला न हो, मगर जबसे उनके आईपीएस बनने की आहट हुई है, अचानक से रिश्तेदारों की आमद बढ़ गई है, इसलिए कुछ दिन से घर में खाना अच्छा बन रहा है।