गुजरात पुलिस की फर्जी मुठभेड़ (जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच पैनल ने ऐसा निष्कर्ष निकाला है।) में मारे गए तीन लोगों में से एक के बेटे ने शनिवार (11 जनवरी, 2019) को कहा कि उन्हें सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मुठभेड़ के आरोपियों के छूटने बाद आने वाले दिनों में इंसाफ मिलने की उम्मीद बहुत कम है। 2005 में गुजरात के जामनगर में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए हाजी इस्माइल के बेटे महबूब ने कहा, ‘इससे (जांच रिपोर्ट) हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सब ने देखा कि सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति के मामले में क्या हुआ। सभी को बरी कर दिया गया। मुझे खुदा के सिवा से किसी से उम्मीद नहीं।’
हाजी इस्माइल के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एसएस बेदी की जांच में पाया गया कि समीर पठान की मौत अक्टूबर 2002 में हुई थी और 2006 में कासिम जफर की मौत फर्जी मुठभेड़ों के परिणामस्वरूप हुई थी। महबूब ने फोन बताया, ‘मेरे पिता की हत्या के मामले को आगे नहीं बढ़ाने के लिए प्रशासन के लोगों पर दबाव था।’ महबूब अब जामनगर जिले के जाम साल्या में शिफ्ट हो गए है। यहां वह आईस्क्रीम बनाने की छोटी फैक्ट्री चलाते हैं। उनके बड़े भाई मुंबई में नौकरी करते हैं जबकि छोटा भाई हबीब, महबूब के साथ रहता है।
बता दें कि जस्टिस बेदी की रिपोर्ट में 22 अक्टूबर, 2002 को समीर खान पठान की मौत को नृशंस हत्या बताया गया। तब डीसीपी डीजी वंजारा और संयुक्त सीपी पीपी पांडे के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के अहमदाबाद डिटेक्शन के एक ग्रुप द्वारा मुठभेड़ में पठान को मार दिया गया। पुलिस ने उन्हें जैश-ए-मोहम्मद का ऑपरेटिव बताया जिसने जाहिर तौर पर पाकिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली। इसके अलावा वह गुजरात के मुख्यंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने वाली टीम का हिस्सा था।
शनिवार को पठान के पिता सरफराज खान (68) ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा, ‘मेरे बच्चे को आतंकवादी बता कर मार डाला और मुझे आतंकवादी का बाप बना कर बर्बाद कर दिया। मेरी नौकरी चली गई।’ सरफान खान ने बताया, ‘2002 में सरफराज अहमदाबाद नगर परिवहन सेवा में ड्राइवर था। उसे 18,000 महीना तनख्वाह मिलती थी। मुठभेड़ के बाद अगले दस दिनों तक पुलिसवाले घर आते थे और असुविधाजनक समय में पुलिस स्टेशन उठाकर ले जाते। मुझे रात में घंटों इंतजार कराते। इससे समय पर काम करने में मैं नाकाम रहा और दो सप्ताह से भी कम समय में मुझे बर्खास्त कर दिया गया। अहमदाबाद नगर परिवहन सेवा के उच्च अधिकारी ने मुझे आतंकी का पिता बताया।’ सरफराज ने कहा कि उन्होंने 28 सालों तक काम किया, मगर पेंशन देने से इनकार कर दिया गया। इसके अलावा आधी ग्रेच्युटी और पीएफ दिया गया।
दूसरी तरफ मुंबई निवासी मरियम बीबी (40) ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण का धन्यवाद देते हुए फोन पर संडे एक्सप्रेस से कहा, ‘मैंने इस दिन को उनके निस्वार्थ योगदान के कारण देखा है।’ जानना चाहिए कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के कुछ घंटे बाद उनके पति रोड मृत पाए गए थे। पुलिस रिपोर्ट में इसे सड़क दुर्घटना बताया गया। जफर अन्य 17 लोगों के साथ अहमदाबाद में स्थित हुसैनी टीकरी धार्मिक यात्रा पर आए थे।
जस्टिस बेदी की रिपोर्ट के मुताबिक एक पुलिस टीम आपराधिक गैंग के बारे में पूछताछ करने के लिए उन्हें एक निजी वाहन में शाहीबाग ले गई। जफर ने जब पूछा कि उन्हें हिरासत में क्यों रखा गया तो क्रुद्ध पुलिसकर्मी उन्हें घसीट कर ले गया।
साभार-
हाजी इस्माइल के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एसएस बेदी की जांच में पाया गया कि समीर पठान की मौत अक्टूबर 2002 में हुई थी और 2006 में कासिम जफर की मौत फर्जी मुठभेड़ों के परिणामस्वरूप हुई थी। महबूब ने फोन बताया, ‘मेरे पिता की हत्या के मामले को आगे नहीं बढ़ाने के लिए प्रशासन के लोगों पर दबाव था।’ महबूब अब जामनगर जिले के जाम साल्या में शिफ्ट हो गए है। यहां वह आईस्क्रीम बनाने की छोटी फैक्ट्री चलाते हैं। उनके बड़े भाई मुंबई में नौकरी करते हैं जबकि छोटा भाई हबीब, महबूब के साथ रहता है।
बता दें कि जस्टिस बेदी की रिपोर्ट में 22 अक्टूबर, 2002 को समीर खान पठान की मौत को नृशंस हत्या बताया गया। तब डीसीपी डीजी वंजारा और संयुक्त सीपी पीपी पांडे के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के अहमदाबाद डिटेक्शन के एक ग्रुप द्वारा मुठभेड़ में पठान को मार दिया गया। पुलिस ने उन्हें जैश-ए-मोहम्मद का ऑपरेटिव बताया जिसने जाहिर तौर पर पाकिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली। इसके अलावा वह गुजरात के मुख्यंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने वाली टीम का हिस्सा था।
शनिवार को पठान के पिता सरफराज खान (68) ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा, ‘मेरे बच्चे को आतंकवादी बता कर मार डाला और मुझे आतंकवादी का बाप बना कर बर्बाद कर दिया। मेरी नौकरी चली गई।’ सरफान खान ने बताया, ‘2002 में सरफराज अहमदाबाद नगर परिवहन सेवा में ड्राइवर था। उसे 18,000 महीना तनख्वाह मिलती थी। मुठभेड़ के बाद अगले दस दिनों तक पुलिसवाले घर आते थे और असुविधाजनक समय में पुलिस स्टेशन उठाकर ले जाते। मुझे रात में घंटों इंतजार कराते। इससे समय पर काम करने में मैं नाकाम रहा और दो सप्ताह से भी कम समय में मुझे बर्खास्त कर दिया गया। अहमदाबाद नगर परिवहन सेवा के उच्च अधिकारी ने मुझे आतंकी का पिता बताया।’ सरफराज ने कहा कि उन्होंने 28 सालों तक काम किया, मगर पेंशन देने से इनकार कर दिया गया। इसके अलावा आधी ग्रेच्युटी और पीएफ दिया गया।
दूसरी तरफ मुंबई निवासी मरियम बीबी (40) ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण का धन्यवाद देते हुए फोन पर संडे एक्सप्रेस से कहा, ‘मैंने इस दिन को उनके निस्वार्थ योगदान के कारण देखा है।’ जानना चाहिए कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के कुछ घंटे बाद उनके पति रोड मृत पाए गए थे। पुलिस रिपोर्ट में इसे सड़क दुर्घटना बताया गया। जफर अन्य 17 लोगों के साथ अहमदाबाद में स्थित हुसैनी टीकरी धार्मिक यात्रा पर आए थे।
जस्टिस बेदी की रिपोर्ट के मुताबिक एक पुलिस टीम आपराधिक गैंग के बारे में पूछताछ करने के लिए उन्हें एक निजी वाहन में शाहीबाग ले गई। जफर ने जब पूछा कि उन्हें हिरासत में क्यों रखा गया तो क्रुद्ध पुलिसकर्मी उन्हें घसीट कर ले गया।
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